अग्नि-सूक्तम् । ऋ० १। १"

AnandShastri
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🔥 अग्नि सूक्तम् 🔥

अग्नि सूक्तम् — ऋग्वेद मंडल १ का प्रथम सूक्त है। इसमें अग्निदेव का गुणगान किया गया है, जो यज्ञ के पुरोहित, देवता और हवि स्वीकर्ता हैं। इन नौ मन्त्रों में अग्नि को साक्षात् दिव्यता का प्रतीक बताया गया है जो मनुष्य को तेज, धन, यश और कल्याण प्रदान करते हैं।

१. अग्निमीले पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजं होतारं रत्नधातमम् ॥१॥

I glorify Agni, the high priest of sacrifice, the divine, the ministrant, who is the offerer and possessor of greatest wealth.

हम अग्निदेव की स्तुति करते हैं जो यज्ञ के पुरोहित, देवता, ऋत्विज, होता और याचकों को रत्नों से विभूषित करने वाले हैं ॥१॥

२. अग्नि पूर्वेभिॠषिभिरिड्यो नूतनैरुत । स देवाँ एह वक्षति ॥२॥

May that Agni, who is worthy to be praised by ancient and modern sages, gather the Gods here.

जो अग्निदेव पूर्वकालीन ऋषियों द्वारा प्रशंसित हैं और आधुनिक विद्वानों द्वारा भी स्तुत्य हैं, वे इस यज्ञ में देवताओं का आवाहन करें ॥२॥

३. अग्निना रयिमश्न्वत् पोषमेव दिवेदिवे। यशसं वीरवत्तमम् ॥३॥

Through Agni, one gets lot of wealth that increases day by day. One gets fame and the best progeny.

अग्निदेव मनुष्यों को प्रतिदिन बढ़ने वाला धन, यश एवं पुत्र-पौत्रादि वीर पुरुष प्रदान करते हैं ॥३॥

४. अग्ने यं यज्ञमध्वरं विश्वत: परिभूरसि। स इद्देवेषु गच्छति ॥४॥

O Agni, you are surrounding the sacrifice on all sides, that which indeed reaches the gods.

हे अग्निदेव, आप हिंसारहित यज्ञ को सभी ओर से आवृत करते हैं और वही यज्ञ देवताओं तक पहुँचता है ॥४॥

५. अग्निहोर्ता कविक्रतु: सत्यश्चित्रश्रवस्तम: । देवि देवेभिरा गमत् ॥५॥

May Agni, the sacrificer, one who possesses immense wisdom, he who is true, has most distinguished fame, come hither with the gods.

हे अग्निदेव, आप हवि प्रदाता, ज्ञान और कर्म की संयुक्त शक्ति के प्रेरक, सत्यरूप एवं विलक्षण हैं। देवों के साथ यज्ञ में पधारें ॥५॥

६. यदग्ने दाशुषे त्वमग्ने भद्रं करिष्यसि । तवेत्तत् सत्यमग्निर: ॥६॥

O Agni, whatever good you will do and whatever possessions you bestow upon the worshipper, that, O Angiras, is indeed your essence.

हे अग्निदेव, आप यजमान का धन, आवास, संतान एवं पशुओं की समृद्धि करते हैं और जो कल्याण होता है वह आपको ही प्राप्त होता है ॥६॥

७. उप त्वाग्ने दिवेदिवे दोषावस्तर्धिया वयम् । नमो भरन्त एमसि॥७॥

O Agni, the illuminer of darkness, we approach near thee day by day, while bearing obeisance.

हे अग्निदेव, हम दिन-रात आपकी श्रेष्ठ बुद्धि से स्तुति करते हैं और आपका गुणगान करते हैं ॥७॥

८. राजन्तमध्वराणां गोपांमृतस्य दीदिविम् । वर्धमानं स्वे दमे ॥८॥

The radiant protector of sacrifices, shining in his own abode, the bright star of truth.

हम दिप्तिमान, यज्ञों के रक्षक, सत्यव्रत आलोकित करने वाले अग्निदेव के निकट स्तुतिपूर्वक आते हैं ॥८॥

९. स न: पितेव सूनवेग्ने सूपायनो भव । सचस्वा न: स्वस्तये ॥९॥

O Agni, be easily accessible to us like a father to his son. Accompany us for our well being.

हे अग्निदेव, जैसे पुत्र को पिता सहजता से प्राप्त होता है, वैसे ही आप हमारे कल्याण के लिए निकट रहें ॥९॥

📘 सारांश (संक्षेप)

अग्नि सूक्त में अग्निदेव को यज्ञ का केन्द्र बताया गया है। वे देवताओं और मनुष्यों के मध्य सेतु हैं। अग्नि के माध्यम से यज्ञ फलदायी होता है, जिससे धन, यश, पुत्र और कल्याण प्राप्त होता है।

© 2025 वेद स्तोत्र संग्रह |  By Anand Tripathi

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