आदि शंकराचार्य विरचितम् निर्वाण षटकम्
निर्वाण षट्कम् क्या हैं ?
आदि गुरु शंकराचार्य के अपने गुरु बाल शंकर से सर्वप्रथम भेंट के अवसर पर उनके गुरु ने उनसे कहा की तुम्हारा परिचय क्या हैं तूम कौन हो ? इस पर जो शंकराचार्य जी ने उत्तर दिया वही निर्वाण षट्कम के नाम से विख्यात हैं ।
आत्मा क्या नहीं है यह समझाने के उपरान्त आदि शंकराचार्य जी अब बता रहें हैं की आत्मा वास्तव मैं हैं क्या ।
मनोबुद्धयहंकारचित्तानि नाहम् , न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे ।
मैं न तो मन हूँ , न बुद्धि , न अहंकार , न ही चित्त हूं , मैं न तो कान हूं , न जीभ , न नासिका , न ही नेत्र हूं ।।
न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः , चिदानन्द रूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।।
मैं न को आकाश हूं , न धरती , न अग्नि , न ही वायु हूं , मैं तो शुद्ध चेतना हूं , अनादि , अनंत शिव हूं ।।
न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायुः , न वा सप्तधातुर्न वा पञ्चकोशः ।।
मैं न प्राण हूं , न ही पंच वायु हूं , मैं न सात धातु हूं , और न ही पांच कोश हूं ।।
न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायू , चिदानन्द रूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।।
मैं न वाणी हूं , न हाथ हूं , न पैर , न ही उत्सर्जन की इन्द्रियां हूं , मैं तो शुद्ध चेतना हूं , अनादि , अनंत शिव हूं ।।
न में द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ , मदो नैव में नैव मात्सर्य भावः ।।
न मुझे घृणा है , न लगाव है , न मुझे लोभ हैं , और न मोह , न मुझे अभिमान है , न ईर्ष्या हैं ।।
न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्षः , चिदानन्द रूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।।
मैं धर्म , धन , काम एवं मोक्ष से परे हूं , मैं तो शुद्ध चेतना हूं , अनादि , अनंत शिव हूं ।।
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखम् , न मन्त्रो न तीर्थं न वेदा न यज्ञाः ।।
मैं पुण्य , पाप , सुख और दुख से विलग हूं , मैं न मंत्र हूं , न तीर्थ , न ज्ञान , न ही यज्ञ हूं ।।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता , चिदानन्द रूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।।
न मैं भोजन ( भोगने की वस्तु ) हूं न ही भोग का अनुभव , और न ही भोक्ता हूं , मैं तो शुद्ध चेतना हूं , अनादि , अनंत शिव हूं ।।
न मृत्युर्न शङ्का न मे जातिभेदः , पिता नैव मे नैव माता न जन्म ।।
न मुझे मृत्यु का डर है , न जाति का भेदभाव , मेरा न कोई पिता है , न माता , न ही मैं कभी जन्मा था ।।
न बन्धुर्नन न मित्रं गुरूर्नैव शिष्यः , चिदानन्द रूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।।
मेरा न कोई भाई हैं , न मित्र , न गुरू , न शिष्य , मैं तो शुद्ध चेतना हूं , अनादि , अनंत शिव हूं ।।
अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो , विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् ।।
मैं निर्विकल्प हूं , निराकार हूं , मैं चैतन्य के रूप में सब जगह व्याप्त हूं , सभी इन्द्रियों में हूं ।।
न चासंगतं नैव मुक्तिर्न मेयः , चिदानन्द रूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।।
न मुझे किसी चीज में आसक्ति है , न ही मैं उससे मुक्त हूं , मैं तो शुद्ध चेतना हूं , अनादि , अनंत शिव हूं ।।
।। शिवोहम् , शिवोहम् , शिवोहम् ।।