Guru Gita Stotram in Sanskrit गुरू गिता स्तोत्रम् संस्कृत हिन्दी


 
॥ गुरु स्तोत्रम् ॥

॥ श्री गुरु स्तोत्रम् ॥

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥

👉 अर्थ: गुरु ही ब्रह्मा, गुरु ही विष्णु और गुरु ही महेश्वर हैं। वे साक्षात् परम ब्रह्म हैं। ऐसे श्रीगुरु को नमस्कार।

अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥

👉 अर्थ: जिन्होंने सम्पूर्ण चराचर जगत में व्याप्त अखण्ड तत्त्व का बोध कराया, उन श्रीगुरु को प्रणाम।

अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशालाकया ।
चक्षुरुनमीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥

👉 अर्थ: जिन्होंने अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कर ज्ञानरूपी अंजन से नेत्र खोले, उन गुरु को प्रणाम।

स्थावरं जंगमं व्याप्तं येन कृत्स्नं चर-अचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥

👉 अर्थ: जिन्होंने यह दिखाया कि स्थावर और जंगम सभी उस एक परम तत्त्व से व्याप्त हैं, उन गुरु को नमन।

चिद्रूपेण परिव्याप्तं त्रैलोक्यं सचराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥

👉 अर्थ: जिन्होंने चेतन स्वरूप परम तत्त्व का ज्ञान कराया, जो तीनों लोकों में व्याप्त है, उन श्रीगुरु को प्रणाम।

सर्वश्रुतिशिरोरत्नसमुद्भासितमूर्तये ।
वेदांतम्बुजसूर्याय तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥

👉 अर्थ: जो वेद-उपनिषदों के सारस्वरूप, वेदान्त रूपी कमल के सूर्य हैं – उन गुरु को नमन।

चैतन्यः शाश्वतः शान्तो व्योमतीतोनिरंजनः ।
बिन्दूनादकलातीतस्तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥

👉 अर्थ: जो चैतन्यस्वरूप, शाश्वत, शांत, निष्कलुष और बिन्दु-नाद से परे हैं – उन गुरु को नमस्कार।

ज्ञानशक्तिसमारूढस्तत्त्वमालाविभूषितः ।
भुक्तिमुक्तिप्रदाता च तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥

👉 अर्थ: जो ज्ञान और शक्ति से युक्त हैं और भोग-मोक्ष दोनों प्रदान करते हैं – उन गुरु को प्रणाम।

अनेकजन्मसम्प्राप्तकर्मेन्धनविदाहिने ।
आत्मज्ञानाग्निदानेन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥

👉 अर्थ: जो आत्मज्ञान रूपी अग्नि से अनेक जन्मों के संचित कर्म को भस्म कर देते हैं – उन गुरु को नमन।

शोषणं भवसिन्धोश्च प्रपन्नं सारसम्पदाः ।
यस्य पादोदकं सम्यक् तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥

👉 अर्थ: जिनके चरणामृत से संसार सागर से पार होकर दिव्य सम्पदा मिलती है – उन गुरु को प्रणाम।

न गुरुरधिकं तत्त्वं न गुरुरधिकं तपः ।
तत्त्वज्ञानात् परं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥

👉 अर्थ: गुरु से बढ़कर कोई तत्त्व नहीं, कोई तप नहीं और आत्मज्ञान से बढ़कर कुछ नहीं – ऐसे गुरु को प्रणाम।

मन्नाथः श्रीजगन्नाथो मद्गुरुः श्रीजगद्गुरुः ।
मदात्मा सर्वभूतात्मा तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥

👉 अर्थ: मेरे स्वामी जगन्नाथ हैं, मेरे गुरु जगद्गुरु हैं और मेरी आत्मा सबकी आत्मा है – ऐसे गुरु को नमस्कार।

गुरुरादिरनादिश्च गुरुः परमदैवतम् ।
गुरोः परतं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥

👉 अर्थ: गुरु ही आदि हैं, अनादि हैं और परम देवता हैं। गुरु से बढ़कर कोई नहीं है।

ब्रह्मानंदं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं ।
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम् ।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षीभूतं ।
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि ॥

👉 अर्थ: जो ब्रह्मानंद स्वरूप, परम सुखदायक, शुद्ध ज्ञानमूर्ति, द्वंद्वातीत, आकाश के समान व्यापक, नित्य, निर्मल, अचल और त्रिगुणरहित हैं – ऐसे सद्गुरु को मैं नमस्कार करता हूँ।

🌸 सद्गुरु चरणारविन्द को शत-शत प्रणाम 🌸

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