Bhagwat Aarti Lyrics in Hindi


श्रीमद्भागवत महापुराण केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण का साक्षात् रूप है। यह पंचम वेद के रूप में जाना जाता है, जो भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का अमृत है। “श्री भागवत भगवान की आरती” इस दिव्य ग्रंथ की महिमा का स्तुति-गान है, जो मन, वचन और कर्म से शुद्धि प्रदान करती हैं ।


श्री भागवत भगवान की है आरती , पापियों को पाप से है तारती ॥


ये अमर ग्रन्थ, ये मुक्ति पन्थ , ये पंचम वेद निराला,  

नव ज्योति जलाने वाला । हरि नाम यही, हरि धाम यही,  

यही जग मंगल की आरती , पापियों को पाप से है तारती ॥  

श्री भागवत भगवान की है आरती।


ये शान्ति गीत, पावन पुनीत,   पापों को मिटाने वाला ,  

हरि दरश दिखाने वाला । यह सुख करनी, यह दुःख हरिनी,   

श्री मधुसूदन की आरती , पापियों को पाप से है तारती ॥   

श्री भागवत भगवान की है आरती।


ये मधुर बोल, जग फन्द खोल,   सन्मार्ग दिखाने वाला,  

बिगड़ी को बनाने वाला ।   श्री राम यही, घनश्याम यही,  

यही प्रभु की महिमा की आरती,   पापियों को पाप से है तारती ॥  

श्री भागवत भगवान की है आरती।

श्रीमद्भागवत आरती का महत्व:

  • श्रीमद्भागवत का श्रवण, पठन और स्तुति जीवन को शुद्ध करता है।

  • यह आरती भगवत भक्ति को पुष्ट करती है और अज्ञान, पाप, और मोह से मुक्ति दिलाती है।

  • आरती में गाए गए पद साक्षात् भगवान के गुणों का बखान करते हैं और मन को आनंदित करते हैं।

  • एकादशी, भागवत सप्ताह, कृष्ण जन्माष्टमी जैसे पर्वों पर यह आरती विशेष फलदायक होती है।

  • भागवत भगवान की जय , श्री शुकदेव महराज की जय , जय जय श्री राधे ।।

  • नमः परम् हंसा स्वादित चरण कमल चिन् मकरंदा , 

  • भक्तजन मानस निवास , श्री रामचन्द्राय ,

  • ध्येयं सदा परिभवघ्नमभीष्टदोहं
         तीर्थास्पदं शिवविरिञ्चिनुतं शरण्यम् ।
    भृत्यार्तिहं प्रणतफालभवाब्धिपोतं
         वन्दे महापुरुष ते चरणारविन्दम् ॥ १॥
"वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् | देवकीपरमानन्दं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् ||"

"वंशी विभूषित करा नवनीर दाभात् ,
 
पीताम्बरा दरुण बिंब फला धरोष्ठात् |

पूर्णेन्दु सुन्दर मुखादर बिंदु नेत्रात् ,

कृष्णात परम किमपि तत्व अहं न जाने ||
    
  • नारायणं नमस्कृत्य: नरं चैव नरोत्तमम्:  देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्: ।।
  • सीतानाथ समारम्भां रामानन्दार्य मध्यमाम्। अस्मदाचार्य पर्यन्तां वन्दे श्रीगुरू परम्पराम् ।।


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