।। श्री भद्रकाली स्तुति ।।
श्रीमहाभागवतमहापुराण के अन्तर्गत् यह स्तुति प्राप्त होती है इस स्तुति में कुल अष्ट (08) श्लोक हैं जो मनुष्य इन आठ श्लोकों के उच्चारणपूर्वक भगवती की पूजा-अर्चना करता है उसकी समस्त भातिक बाधाएँ जैसे जादूटोना, टोटका, भूत-प्रेत इत्यादि बाधाओं से मुक्ति प्राप्त होती है ।
ब्रह्मविष्णू ऊचतुः
ब्रह्मा और विष्णु बोले- सर्वसृष्टिकारिणी, परमेश्वरी, सत्यविज्ञान रूपा, नित्या, आद्याशक्ति ! आपको हम प्रणाम करते हैं। आप वाणी से परे हैं, निर्गुण और अति सूक्ष्म हैं, ज्ञान से परे और शुद्ध विज्ञान से प्राप्य हैं ।
आप पूर्णा, शुद्धा, विश्वरूपा, सुरूपा, वन्दनीया तथा विश्ववन्द्या हैं। आप सबके अन्तःकरण में वास करती हैं एवं सारे संसार का पालन करती हैं। दिव्य स्थान निवासिनी आप भगवती महाकाली को हमारा प्रणाम है ।
महामायास्वरूपा आप मायामयी तथा माया से अतीत हैं; आप भीषण, श्यामवर्ण वाली, भयंकर नेत्रों वाली परमेश्वरी हैं। आप सिद्धियों से सम्पन्न, विद्यास्वरूपा, समस्त प्राणियों के हृदयप्रदेश में निवास करने वाली तथा सृष्टि का संहार करने वाली हैं, आप महाकाली को हमारा नमस्कार है ।
महेश्वरी ! हम आपके रूप, शील, दिव्य धाम, ध्यान अथवा मन्त्र को नहीं जानते । शरण्ये ! विश्वाराध्ये ! हम सारी सृष्टि की कारणभूता और सत्तास्वरूपा आपकी शरण में हैं ।
मातः ! द्युलोक आपका सिर है, नभोमण्डल आपका नाभिप्रदेश है। चन्द्र, सूर्य और अग्नि आपके त्रिनेत्र हैं, आपका जगना ही सृष्टि के लिये दिन और जागरण का हेतु है और आपकी आँखें मूँद लेना ही सृष्टि के लिये रात्रि है ।
देवता आपकी वाणी हैं, यह पृथ्वी आपका नितम्बप्रदेश तथा पाताल आदि नीचे के भाग आपके जङ्घा, जानु, गुल्फ और चरण हैं। धर्म आपकी प्रसन्नता और अधर्मकार्य आपके कोप के लिये है। आपका जागरण ही इस संसार की सृष्टि है और आपकी निद्रा ही इसका प्रलय है ।
अग्नि आपकी जिह्वा है, ब्राह्मण आपके मुखकमल हैं। दोनों संध्याएँ आपकी दोनों भ्रूकुटियाँ हैं, आप विश्वरूपा हैं, वायु आपका श्वास है, लोकपाल आपके बाहु हैं और इस संसार की सृष्टि, स्थिति तथा संहार आपकी लीला है ।
पूर्णे ! ऐसी सर्वस्वरूपा आप महाकाली को हमारा प्रणाम है। आप ब्रह्मविद्यास्वरूपा हैं। ब्रह्मविज्ञान से ही आपकी प्राप्ति सम्भव है। सर्वसाररूपा, अनन्तस्वरूपिणी माता दुर्गे ! आप हम पर प्रसन्न हों ।
॥ इस प्रकार श्रीमहाभागवतमहापुराणके अन्तर्गत भद्रकालीस्तुति सम्पूर्ण हुई ॥