।। मङ्गलस्तोत्रम् ।।
हिन्दी अर्थ:
"गणों के अधिपति (गणेश जी), सूर्य (भानु), चन्द्रमा (शशी), मंगल (धरासुत), बुध, गुरु (बृहस्पति), शुक्र (भार्गव), शनि (सूर्यनन्दन), राहु और केतु — ये समस्त नवग्रह सदा आपके सभी मनोरथों (इच्छाओं) को पूर्ण करें।"
उपेन्द्र इन्द्रो वरूणो हुताशनः स्त्रिविक्रमो भानुसखश्चतुर्भुजः ।
गन्धर्व-यक्षोरग-सिद्ध-चारणाः कुर्वन्तु वः पूर्णमनोरथं सदा ।। २ ।।
हिन्दी अर्थ:
"उपेन्द्र (विष्णु जी के रूप), इन्द्र (देवताओं के राजा), वरुण (जल के देवता), हुताशन (अग्नि देव), त्रिविक्रम (वामन रूप में तीन पगों में त्रिलोक नापने वाले विष्णु), भानुसख (सूर्य के मित्र), चतुर्भुज (विष्णु का रूप), तथा गन्धर्व (स्वर्गीय गायक), यक्ष (धन के रक्षक), नाग (सर्प जाति), सिद्ध (योग से सिद्ध हुए), चारण (देवगुण गाने वाले) — ये सभी सदा आपकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करें।"
नलो दधीचिः सगरः पुरूरवा शाकुन्तलेयो भरतो धनञ्जयः ।
रामत्रयं वैन्यबली युधिष्ठिरः कुर्वन्तु वः पूर्णमनोरथं सदा ।। ३ ।।
हिन्दी अर्थ:
"नल (निषध देश के धर्मपरायण राजा), दधीचि (महान ऋषि जिन्होंने अस्थियों का दान दिया), सगर (भगीरथ के पूर्वज और समुद्र खोदने वाले), पुरूरवा (प्राचीन चक्रवर्ती सम्राट), शाकुन्तलेय भरत (शकुन्तला और राजा दुष्यंत के पुत्र, जिनके नाम पर भारतवर्ष है), धनञ्जय (अर्जुन), रामत्रय (तीन राम — परशुराम, दशरथ के पुत्र राम, और बलराम), वैन्य (प्राचीन राजा पृथु), बली (दानवीर राजा), और युधिष्ठिर — ये सभी महापुरुष सदा आपकी सभी इच्छाओं को पूर्ण करें।"
मनु-र्मरीचि-र्भृगु-दक्ष-नारदाः पराशरो व्यास-वसिष्ठ-भार्गवाः ।
वाल्मीकि-कुम्भोद्भव-गर्ग-गौतमाः कुर्वन्तु वः पूर्णमनोरथं सदा ।। ४ ।।
हिन्दी अर्थ:
"मनु (मानव जाति के प्रथम प्रजापति), मरीचि (ब्रह्मा के मानस पुत्र), भृगु (महर्षि एवं ज्योतिष शास्त्र के प्रवर्तक), दक्ष (प्रजापति), नारद (देवर्षि), पराशर (महर्षि और वेदों के ज्ञाता), व्यास (वेदव्यास, महाभारत और पुराणों के रचयिता), वसिष्ठ (राजऋषि), भार्गव (परशुराम), वाल्मीकि (रामायण के रचयिता), कुम्भोद्भव (अगस्त्य मुनि, जो घट से उत्पन्न हुए), गर्ग (ज्योतिषाचार्य), गौतम (महर्षि) — ये सभी सदा आपकी समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण करें।"
शम्भाशची सत्यवती च देवकी गौरी च लक्ष्मीश्च दितिश्च रूक्मिणी ।
कूर्मो गजेन्द्रः सचराऽचरो धरा कुर्वन्तु वः पूर्णमनोरथं सदा ।। ५ ।।
हिन्दी अर्थ:
"शम्भा (भगवान शिव की शक्ति), शची (इन्द्राणी, इन्द्र की पत्नी), सत्यवती (महाभारत की चरित्र नायिका), देवकी (भगवान कृष्ण की माता), गौरी (पार्वती), लक्ष्मी (धन और वैभव की देवी), दिति (दानवों की माता), रुक्मिणी (भगवान कृष्ण की पत्नी), कूर्म (भगवान विष्णु का कच्छप अवतार), गजेन्द्र (हाथी, जो विष्णु द्वारा उद्धार प्राप्त करता है), सचराचर (सभी चर और अचर जीव), और धरती माता — ये सभी सदा आपकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करें।"
गंगा च क्षिप्रा यमुना सरस्वती गोदावरी नेत्रवती च नर्मदा ।
सा चन्द्रभागा वरूणा त्वसी नदी कुर्वन्तु वः पूर्णमनोरथं सदा ।। ६ ।।
हिन्दी अर्थ:
"गंगा, क्षिप्रा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी, नेत्रवती और नर्मदा, चन्द्रभागा, वरुणा और त्वसी (या ताम्रपर्णी) — ये सभी पवित्र नदियाँ सदा आपकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करें।"
तुङ्ग-प्रभासो गुरूचक्रपुष्करं गया विमुक्ता बदरी वटेश्वरः ।
केदार पम्पासरसश्च नैमिषं कुर्वन्तु वः पूर्णमनोरथं सदा ।। ७ ।।
हिन्दी अर्थ:
"तुङ्ग (तुङ्गभद्रा), प्रभास (प्रभास क्षेत्र – जहाँ श्रीकृष्ण ने देह त्याग किया), गुरुचक्र (गुरु क्षेत्र), पुष्कर (राजस्थान का पवित्र सरोवर), गया (पितृ तर्पण हेतु प्रसिद्ध), विमुक्ता (मोक्षदायिनी भूमि), बदरी (बद्रीनाथ), वटेश्वर (वट वृक्ष से संबंधित शिव का स्थान), केदार (केदारनाथ), पम्पासर (पंपा सरोवर – हनुमान जी से जुड़ा), और नैमिष (नैमिषारण्य) — ये सभी तीर्थस्थल सदा आपकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करें।"
शङ्खश्च दूर्वासित -पत्र चामरं मणि प्रदीपो वररत्नकाञ्चनम् ।
सम्पूर्णकुम्भः सुहृतो हुताशनः कुर्वन्तु वः पूर्णमनोरथं सदा ।। ८ ।।
हिन्दी अर्थ:
"शंख (पवित्रता और विजय का प्रतीक), दूर्वा (शुभ तृण), अशितपत्र (काले पत्तों वाले पौधे), चामर (यक्षों द्वारा झलने वाला पंखा), मणि (रत्न), दीपक (प्रकाश और ज्ञान का प्रतीक), उत्तम रत्न और स्वर्ण,
पूर्ण जल-कुंभ (समृद्धि का प्रतीक), प्रियजन (सुहृद), और अग्नि देव (हुताशन) — ये सभी सदा आपकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करें।"
प्रयाणकाले यदि वा सुमङ्गले प्रभातकाले च नृपाभिषेचने ।
धर्मार्थकामाय जयाय भाषित व्यासेन कुर्यात्तु मनोरथं हि तत् ।। ९ ।।
हिन्दी अर्थ:
"प्रयाण (यात्रा) के समय, किसी शुभ कार्य (सुमङ्गल) के आरम्भ में, प्रभात (सुबह) के समय, या किसी राजा के अभिषेक (राज्यारोहण) के अवसर पर — यदि यह स्तोत्र धर्म, अर्थ, काम (कामनाओं) और विजय की प्राप्ति हेतु पढ़ा जाए, तो व्यासजी द्वारा कहे गए इस स्तोत्र के प्रभाव से निश्चित ही वह मनोरथ (इच्छा) पूर्ण होता है।"
।। इति व्यासकृत मङ्गलस्तोत्रं पाठं करिष्ये ।।
यदि आप किसी विशेष "मङ्गलस्तोत्र" (जैसे स्कन्दपुराण, वामनपुराण या किसी विशिष्ट देवता के स्तोत्र) की तलाश में हैं, तो कृपया उसका नाम या स्रोत बताइए, मैं उसी अनुसार पूर्ण स्तोत्र दे सकता हूँ।