श्री हनुमान चालीसा | Shree Hanuman Chalisa Lyrics in Hindi

🕉️ हनुमान चालीसा का वर्णन | Hanuman Chalisa in Hindi – विवरण, महत्व और लाभ

हनुमान चालीसा हिन्दू धर्म में सबसे लोकप्रिय और प्रभावशाली स्तोत्रों में से एक है। इसका पाठ करने से जीवन में सुख, शांति, साहस और सफलता प्राप्त होती है। यह स्तोत्र गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित है और इसमें हनुमान जी की भक्ति, शक्ति, ज्ञान और सेवा भाव का सुंदर चित्रण मिलता है।


🔶 हनुमान चालीसा क्या है?

हनुमान चालीसा एक 40 चौपाइयों का भक्ति गीत है जिसमें भगवान हनुमान की महिमा का गुणगान किया गया है। इसके आरंभ और अंत में एक-एक दोहा है। "चालीसा" का अर्थ ही होता है – 40।


🔶 हनुमान चालीसा के लेखक कौन हैं?

हनुमान चालीसा के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास हैं, जिन्होंने 16वीं शताब्दी में इसे अवधी भाषा में लिखा। वे ही रामचरितमानस के भी रचयिता हैं।


🔶 हनुमान चालीसा के मुख्य भाव:

  • हनुमान जी को अतुल बलवान, विद्वान, और राम भक्त बताया गया है।

  • वे संकटों को हरने वाले, रोगों को मिटाने वाले और भूत-पिशाच से रक्षा करने वाले हैं।

  • चालीसा में बताया गया है कि हनुमान जी को राम कार्य में गहरी रूचि है और वे सदैव साधु-संतों के रक्षक हैं।


🔶 हनुमान चालीसा पढ़ने के फायदे (Benefits of Hanuman Chalisa):

  1. 🛡️ संकट से मुक्ति – जीवन के हर कष्ट और डर से मुक्ति मिलती है।

  2. 💪 साहस और आत्मबल में वृद्धि – मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ता है।

  3. 🧘‍♂️ मन की शांति – तनाव और चिंता दूर होती है।

  4. 🧿 नकारात्मक ऊर्जा का नाश – बुरी शक्तियाँ पास नहीं आतीं।

  5. 📿 आध्यात्मिक जागृति – भगवान राम की भक्ति के द्वार खुलते हैं।


🔶 हनुमान चालीसा कब पढ़ें?

  • सुबह या शाम के समय हनुमान चालीसा का पाठ करना सबसे शुभ माना जाता है।

  • मंगलवार और शनिवार को विशेष रूप से पढ़ने की परंपरा है।

चौपाई 1:

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।

अर्थ: हे हनुमान जी! आप ज्ञान और गुणों के समुद्र हैं। तीनों लोकों में आपकी कीर्ति प्रकाशित है।


चौपाई 2:

राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

अर्थ: आप श्रीराम के दूत और अपार बल के धाम हैं। आप अंजनी के पुत्र और पवन देवता के नाम से प्रसिद्ध हैं।


चौपाई 3:

महाबीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी।।

अर्थ: आप महान पराक्रमी और बजरंग (वज्र जैसे शरीर वाले) हैं। आप बुरी बुद्धि को दूर करते हैं और अच्छे विचारों के साथी हैं।


चौपाई 4:

कंचन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुण्डल कुँचित केसा।।

अर्थ: आपका शरीर सोने के समान चमकता है। आप सुंदर वस्त्र धारण करते हैं, कानों में कुण्डल हैं और घुंघराले बाल हैं।


चौपाई 5:

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे । कांधे मूंज जनेउ साजे।।

अर्थ: आपके हाथ में वज्र और ध्वजा (ध्वज) है, और कंधे पर यज्ञोपवीत (जनेऊ) शोभायमान है।


चौपाई 6:

शंकर सुवन केसरी नंदन । तेज प्रताप महा जग वंदन।।

अर्थ: आप शिव के अंश और केसरी के पुत्र हैं। आपकी तेजस्विता और पराक्रम के कारण समस्त संसार आपकी वंदना करता है।


चौपाई 7:

बिद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर।।

अर्थ: आप विद्वान, गुणवान और अत्यंत चतुर हैं। आप श्रीराम के कार्य को करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।


चौपाई 8:

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया।।

अर्थ: आप श्रीराम के चरित्र को सुनने में आनंद लेते हैं और राम, लक्ष्मण व सीता आपके हृदय में निवास करते हैं।


चौपाई 9:

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा।।

अर्थ: आपने सूक्ष्म रूप धारण कर सीता को दर्शन दिया और भयंकर रूप धारण कर लंका को जलाया।


चौपाई 10:

भीम रूप धरि असुर संहारे । रामचन्द्र के काज संवारे।।

अर्थ: आपने भयानक रूप लेकर राक्षसों का संहार किया और श्रीराम का कार्य सिद्ध किया।


चौपाई 11:

लाय सजीवन लखन जियाये । श्री रघुबीर हरषि उर लाये।।

अर्थ: आपने संजीवनी लाकर लक्ष्मण की जान बचाई, जिससे श्रीराम अत्यंत प्रसन्न होकर आपको गले से लगाया।


चौपाई 12:

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

अर्थ: श्रीराम ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा – "तुम मुझे भरत जैसे प्रिय हो।"


चौपाई 13:

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं।।

अर्थ: हजार मुख वाले शेषनाग भी तुम्हारे गुणों का गान करते हैं। यह कहकर श्रीराम ने आपको गले से लगा लिया।


चौपाई 14:

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा।।

अर्थ: सनकादिक, ब्रह्मा, नारद, सरस्वती और शेषनाग आदि सभी मुनि व देवता आपकी महिमा का गुणगान करते हैं।


चौपाई 15:

जम कुबेर दिगपाल जहां ते । कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।

अर्थ: यमराज, कुबेर, दिक्पाल आदि भी आपकी महिमा का पूर्ण वर्णन नहीं कर सकते।


चौपाई 16:

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा । राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

अर्थ: आपने सुग्रीव की सहायता कर उन्हें श्रीराम से मिलवाया और राजा बनवाया।


चौपाई 17:

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना । लंकेश्वर भए सब जग जाना।।

अर्थ: विभीषण ने आपकी सलाह मानी और लंका का राजा बना, यह सारी दुनिया जानती है।


चौपाई 18:

जुग सहस्र जोजन पर भानु । लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

अर्थ: आपने बाल्यकाल में सूर्य को हजार योजन दूर जानकर मीठा फल समझकर निगल लिया था।


चौपाई 19:

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।

अर्थ: आपने श्रीराम की अंगूठी मुंह में रखी और समुद्र पार कर गए, यह कोई आश्चर्य नहीं।


चौपाई 20:

दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

अर्थ: संसार के सभी कठिन कार्य आपके कृपा से सरल हो जाते हैं।


चौपाई 21:

राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।

अर्थ: आप श्रीराम के द्वार के रक्षक हैं, आपकी आज्ञा के बिना कोई प्रवेश नहीं कर सकता।


चौपाई 22:

सब सुख लहै तुम्हारी सरना । तुम रच्छक काहू को डर ना।।

अर्थ: जो आपकी शरण में आता है, उसे सब सुख मिलते हैं। आपका रक्षक होने पर किसी से डरने की आवश्यकता नहीं।


चौपाई 23:

आपन तेज सम्हारो आपै । तीनों लोक हांक तें कांपै।।

अर्थ: आप अपने तेज को स्वयं ही संभालते हैं। आपके गर्जन से तीनों लोक कांप उठते हैं।


चौपाई 24:

भूत पिसाच निकट नहिं आवै । महाबीर जब नाम सुनावै।।

अर्थ: हनुमान जी का नाम सुनते ही भूत-पिशाच दूर भाग जाते हैं।


चौपाई 25:

नासै रोग हरे सब पीरा । जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।

अर्थ: जो भी निरंतर हनुमान जी का नाम जपता है, उसके सभी रोग और पीड़ाएं समाप्त हो जाती हैं।


चौपाई 26:

संकट तें हनुमान छुड़ावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

अर्थ: जो मन, वचन और कर्म से हनुमान जी का ध्यान करता है, उसे सभी संकटों से मुक्ति मिलती है।


चौपाई 27:

सब पर राम तपस्वी राजा । तिन के काज सकल तुम साजा।।

अर्थ: तपस्वी श्रीराम सब पर राजा हैं, उनके सभी कार्य आपने पूरे किए।


चौपाई 28:

और मनोरथ जो कोई लावै । सोई अमित जीवन फल पावै।।

अर्थ: जो कोई अपनी मनोकामना लेकर आपके पास आता है, उसे अमूल्य फल प्राप्त होता है।


चौपाई 29:

चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा।।

अर्थ: आपके पराक्रम की महिमा चारों युगों में प्रसिद्ध है, जिससे संसार प्रकाशित है।


चौपाई 30:

साधु संत के तुम रखवारे । असुर निकन्दन राम दुलारे।।

अर्थ: आप साधु-संतों की रक्षा करते हैं, राक्षसों का विनाश करते हैं और श्रीराम के प्रिय हैं।


चौपाई 31:

अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता।।

अर्थ: आप आठों सिद्धियाँ और नौ निधियों के दाता हैं। यह वरदान माता सीता ने आपको दिया था।


चौपाई 32:

राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा।।

अर्थ: आपके पास राम नाम रूपी अमृत है। आप सदा श्रीराम के सेवक बने रहें।


चौपाई 33:

तुह्मरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै।।

अर्थ: आपका भजन करने से श्रीराम की प्राप्ति होती है और जन्म-जन्मांतर के दुख समाप्त हो जाते हैं।


चौपाई 34:

अंत काल रघुबर पुर जाई । जहां जन्म हरिभक्त कहाई।।

अर्थ: अंत समय में श्रीराम के लोक को प्राप्त होता है और अगले जन्म में भी हरिभक्त के रूप में जन्म होता है।


चौपाई 35:

और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।

अर्थ: अन्य देवताओं में मन न लगाकर, यदि हनुमान जी की सेवा करें तो सभी सुख प्राप्त होते हैं।


चौपाई 36:

सङ्कट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

अर्थ: जो बलवान हनुमान जी का स्मरण करता है, उसके सभी संकट दूर हो जाते हैं और सभी पीड़ा मिटती है।


चौपाई 37:

जय जय जय हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।

अर्थ: हे हनुमान जी! आप पर बारम्बार जय हो। कृपया मुझ पर गुरु के समान कृपा करें।


चौपाई 38:

जो सत बार पाठ कर कोई । छूटहि बन्दि महा सुख होई।।

अर्थ: जो कोई इसका सौ बार पाठ करता है, वह सभी बंधनों से मुक्त होकर महान सुख प्राप्त करता है।


चौपाई 39:

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा।।

अर्थ: जो व्यक्ति हनुमान चालीसा पढ़ता है, उसे सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। इसके साक्षी स्वयं भगवान शिव हैं।


चौपाई 40:

तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय महं डेरा।।

अर्थ: तुलसीदास जी सदा श्रीराम के सेवक हैं। हे प्रभु! कृपया मेरे हृदय में वास करें।


दोहा:

पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप । राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

अर्थ: हे पवनपुत्र! आप संकटों का नाश करने वाले और मंगलकारी स्वरूप हैं। श्रीराम, लक्ष्मण, और सीता सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए।

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