चौपाई 1:
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
अर्थ: हे हनुमान जी! आप ज्ञान और गुणों के समुद्र हैं। तीनों लोकों में आपकी कीर्ति प्रकाशित है।
चौपाई 2:
राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
अर्थ: आप श्रीराम के दूत और अपार बल के धाम हैं। आप अंजनी के पुत्र और पवन देवता के नाम से प्रसिद्ध हैं।
चौपाई 3:
महाबीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी।।
अर्थ: आप महान पराक्रमी और बजरंग (वज्र जैसे शरीर वाले) हैं। आप बुरी बुद्धि को दूर करते हैं और अच्छे विचारों के साथी हैं।
चौपाई 4:
कंचन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुण्डल कुँचित केसा।।
अर्थ: आपका शरीर सोने के समान चमकता है। आप सुंदर वस्त्र धारण करते हैं, कानों में कुण्डल हैं और घुंघराले बाल हैं।
चौपाई 5:
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे । कांधे मूंज जनेउ साजे।।
अर्थ: आपके हाथ में वज्र और ध्वजा (ध्वज) है, और कंधे पर यज्ञोपवीत (जनेऊ) शोभायमान है।
चौपाई 6:
शंकर सुवन केसरी नंदन । तेज प्रताप महा जग वंदन।।
अर्थ: आप शिव के अंश और केसरी के पुत्र हैं। आपकी तेजस्विता और पराक्रम के कारण समस्त संसार आपकी वंदना करता है।
चौपाई 7:
बिद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर।।
अर्थ: आप विद्वान, गुणवान और अत्यंत चतुर हैं। आप श्रीराम के कार्य को करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।
चौपाई 8:
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया।।
अर्थ: आप श्रीराम के चरित्र को सुनने में आनंद लेते हैं और राम, लक्ष्मण व सीता आपके हृदय में निवास करते हैं।
चौपाई 9:
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
अर्थ: आपने सूक्ष्म रूप धारण कर सीता को दर्शन दिया और भयंकर रूप धारण कर लंका को जलाया।
चौपाई 10:
भीम रूप धरि असुर संहारे । रामचन्द्र के काज संवारे।।
अर्थ: आपने भयानक रूप लेकर राक्षसों का संहार किया और श्रीराम का कार्य सिद्ध किया।
चौपाई 11:
लाय सजीवन लखन जियाये । श्री रघुबीर हरषि उर लाये।।
अर्थ: आपने संजीवनी लाकर लक्ष्मण की जान बचाई, जिससे श्रीराम अत्यंत प्रसन्न होकर आपको गले से लगाया।
चौपाई 12:
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
अर्थ: श्रीराम ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा – "तुम मुझे भरत जैसे प्रिय हो।"
चौपाई 13:
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं।।
अर्थ: हजार मुख वाले शेषनाग भी तुम्हारे गुणों का गान करते हैं। यह कहकर श्रीराम ने आपको गले से लगा लिया।
चौपाई 14:
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा।।
अर्थ: सनकादिक, ब्रह्मा, नारद, सरस्वती और शेषनाग आदि सभी मुनि व देवता आपकी महिमा का गुणगान करते हैं।
चौपाई 15:
जम कुबेर दिगपाल जहां ते । कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
अर्थ: यमराज, कुबेर, दिक्पाल आदि भी आपकी महिमा का पूर्ण वर्णन नहीं कर सकते।
चौपाई 16:
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा । राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
अर्थ: आपने सुग्रीव की सहायता कर उन्हें श्रीराम से मिलवाया और राजा बनवाया।
चौपाई 17:
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना । लंकेश्वर भए सब जग जाना।।
अर्थ: विभीषण ने आपकी सलाह मानी और लंका का राजा बना, यह सारी दुनिया जानती है।
चौपाई 18:
जुग सहस्र जोजन पर भानु । लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
अर्थ: आपने बाल्यकाल में सूर्य को हजार योजन दूर जानकर मीठा फल समझकर निगल लिया था।
चौपाई 19:
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
अर्थ: आपने श्रीराम की अंगूठी मुंह में रखी और समुद्र पार कर गए, यह कोई आश्चर्य नहीं।
चौपाई 20:
दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
अर्थ: संसार के सभी कठिन कार्य आपके कृपा से सरल हो जाते हैं।
चौपाई 21:
राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
अर्थ: आप श्रीराम के द्वार के रक्षक हैं, आपकी आज्ञा के बिना कोई प्रवेश नहीं कर सकता।
चौपाई 22:
सब सुख लहै तुम्हारी सरना । तुम रच्छक काहू को डर ना।।
अर्थ: जो आपकी शरण में आता है, उसे सब सुख मिलते हैं। आपका रक्षक होने पर किसी से डरने की आवश्यकता नहीं।
चौपाई 23:
आपन तेज सम्हारो आपै । तीनों लोक हांक तें कांपै।।
अर्थ: आप अपने तेज को स्वयं ही संभालते हैं। आपके गर्जन से तीनों लोक कांप उठते हैं।
चौपाई 24:
भूत पिसाच निकट नहिं आवै । महाबीर जब नाम सुनावै।।
अर्थ: हनुमान जी का नाम सुनते ही भूत-पिशाच दूर भाग जाते हैं।
चौपाई 25:
नासै रोग हरे सब पीरा । जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।
अर्थ: जो भी निरंतर हनुमान जी का नाम जपता है, उसके सभी रोग और पीड़ाएं समाप्त हो जाती हैं।
चौपाई 26:
संकट तें हनुमान छुड़ावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
अर्थ: जो मन, वचन और कर्म से हनुमान जी का ध्यान करता है, उसे सभी संकटों से मुक्ति मिलती है।
चौपाई 27:
सब पर राम तपस्वी राजा । तिन के काज सकल तुम साजा।।
अर्थ: तपस्वी श्रीराम सब पर राजा हैं, उनके सभी कार्य आपने पूरे किए।
चौपाई 28:
और मनोरथ जो कोई लावै । सोई अमित जीवन फल पावै।।
अर्थ: जो कोई अपनी मनोकामना लेकर आपके पास आता है, उसे अमूल्य फल प्राप्त होता है।
चौपाई 29:
चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा।।
अर्थ: आपके पराक्रम की महिमा चारों युगों में प्रसिद्ध है, जिससे संसार प्रकाशित है।
चौपाई 30:
साधु संत के तुम रखवारे । असुर निकन्दन राम दुलारे।।
अर्थ: आप साधु-संतों की रक्षा करते हैं, राक्षसों का विनाश करते हैं और श्रीराम के प्रिय हैं।
चौपाई 31:
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता।।
अर्थ: आप आठों सिद्धियाँ और नौ निधियों के दाता हैं। यह वरदान माता सीता ने आपको दिया था।
चौपाई 32:
राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा।।
अर्थ: आपके पास राम नाम रूपी अमृत है। आप सदा श्रीराम के सेवक बने रहें।
चौपाई 33:
तुह्मरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै।।
अर्थ: आपका भजन करने से श्रीराम की प्राप्ति होती है और जन्म-जन्मांतर के दुख समाप्त हो जाते हैं।
चौपाई 34:
अंत काल रघुबर पुर जाई । जहां जन्म हरिभक्त कहाई।।
अर्थ: अंत समय में श्रीराम के लोक को प्राप्त होता है और अगले जन्म में भी हरिभक्त के रूप में जन्म होता है।
चौपाई 35:
और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
अर्थ: अन्य देवताओं में मन न लगाकर, यदि हनुमान जी की सेवा करें तो सभी सुख प्राप्त होते हैं।
चौपाई 36:
सङ्कट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
अर्थ: जो बलवान हनुमान जी का स्मरण करता है, उसके सभी संकट दूर हो जाते हैं और सभी पीड़ा मिटती है।
चौपाई 37:
जय जय जय हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
अर्थ: हे हनुमान जी! आप पर बारम्बार जय हो। कृपया मुझ पर गुरु के समान कृपा करें।
चौपाई 38:
जो सत बार पाठ कर कोई । छूटहि बन्दि महा सुख होई।।
अर्थ: जो कोई इसका सौ बार पाठ करता है, वह सभी बंधनों से मुक्त होकर महान सुख प्राप्त करता है।
चौपाई 39:
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
अर्थ: जो व्यक्ति हनुमान चालीसा पढ़ता है, उसे सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। इसके साक्षी स्वयं भगवान शिव हैं।
चौपाई 40:
तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय महं डेरा।।
अर्थ: तुलसीदास जी सदा श्रीराम के सेवक हैं। हे प्रभु! कृपया मेरे हृदय में वास करें।
दोहा:
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप । राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
अर्थ: हे पवनपुत्र! आप संकटों का नाश करने वाले और मंगलकारी स्वरूप हैं। श्रीराम, लक्ष्मण, और सीता सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए।