🪔 कनकधारा स्तोत्रम् | हिंदी में अर्थ सहित | माँ लक्ष्मी कृपा का दिव्य स्तोत्रम्
📜 कनकधारा स्तोत्र का इतिहास:
जब आदि शंकराचार्य एक बालक के रूप में संन्यास लेकर ज्ञान की यात्रा पर निकले, तब वे एक दिन भिक्षा मांगने हेतु एक अत्यंत निर्धन ब्राह्मण स्त्री के द्वार पर पहुँचे। उस स्त्री के पास भिक्षा में देने के लिए केवल एक आंवला (आमलकी) था, किंतु उसने वही एकमात्र फल श्रद्धापूर्वक शंकराचार्य को अर्पित कर दिया।
💧 करुणा और भक्ति का अद्भुत संगम:
उस स्त्री की निस्वार्थ भक्ति और त्याग को देखकर बाल शंकराचार्य का हृदय भर आया। उन्होंने वहीं बैठकर माँ लक्ष्मी की स्तुति में २१ श्लोक रचे — जिन्हें हम आज कनकधारा स्तोत्र के रूप में जानते हैं।
🌧️ माँ लक्ष्मी की कृपा — सोने की वर्षा:
माँ लक्ष्मी इस करुणा और स्तुति से अत्यंत प्रसन्न हुईं और उन्होंने उस स्त्री के घर पर "कनकधारा" — अर्थात सोने की वर्षा कर दी। वह स्त्री जीवनभर निर्धनता से मुक्त होकर लक्ष्मी-कृपा से समृद्ध हो गई।
जैसे भ्रमरी अधखिले कुसुमों से अलंकृत तमालतरु का आश्रय लेती है, उसी प्रकार जो श्रीहरि प्रेम भाव से सुशोभित श्रीअंगों पर निरन्तर पड़ती हैं तथा जिसमें सम्पूर्ण ऐश्वर्यों का निवास है, वह सम्पूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी मातामहालक्ष्मीजी की कटाक्षलीला मेरे लिये मंगलदायिनी हो ।
जैसे भ्रमरी महान् कमलदलपर आती-जाती या मँडराती रहती है, उसी प्रकार जो मुरशत्रु श्रीहरि के मुखारविन्द की ओर बारंबार प्रेमपूर्वक जाती और लज्जा के कारण लौट आती है, वह समुद्रकन्या लक्ष्मी की मनोहर दृष्टिमाली माता मुझे धन-सम्पत्ति प्रदान करें ।
जो सम्पूर्ण देवताओं के अधिपति इन्द्र के पद का वैभव और ऐश्वर्य देने में समर्थ हैं, मुरारि श्रीहरि को भी अधिकाधिक आनन्द प्रदान करने वाली हैं तथा जो नीलकमल के अन्दरूनी भाग के समान मनोहर हैं, वह लक्ष्मीजी के अधखुले नयनों की दृष्टि क्षणभर के लिये मुझपर भी थोड़ी-सी अवश्य पड़े ।
शेषनाग पर शयन करने वाले भगवान् विष्णु की धर्मपत्नी श्रीलक्ष्मीजी का वह नेत्र हमें ऐश्वर्य प्रदान करने वाला हो, जिसकी पुतली तथा बरौनियाँ अनंग के वशीभूत (प्रेमपरवश) हो अधखुले, किंतु साथ ही निर्निमेष नयनों से देखने वाले आनन्दकन्द श्रीमुकुन्द को अपने निकट पाकर कुछ तिरछी हो जाती हैं ।
जो भगवान् मधुसूदन के कौस्तुभमणिमण्डित वक्षःस्थल में इन्द्रनीलमयी हारावली-सी सुशोभित होती हैं तथा उनके भी मन में काम (प्रेम) का संचार करने वाली हैं, वह कमलकुंजवासिनी कमला की कटाक्षमाला मेरा कल्याण करें ।
जैसे मेघों की घटा में बिजली चमकती है, उसी प्रकार जो कैटभशत्रु श्रीविष्णु के काली मेघमाला के समान श्यामसुन्दर वक्षःस्थल पर प्रकाशित होती हैं, जिन्होंने अपने आविर्भाव से भृगुवंश को आनन्दित किया है तथा जो समस्त लोकों की जननी हैं, उन भगवती लक्ष्मी की पूजनीया मूर्ति मुझे कल्याण प्रदान करे ।
समुद्रकन्या कमला की वह मन्द, अलस, मन्थर और अर्धोन्मीलित दृष्टि,जिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगलमय भगवान् मधुसूदन के हृदय में प्रथम बार स्थान प्राप्त किया था, यहाँ मुझ पर कृपा करें ।
भगवान् नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी का नेत्ररूपी मेघ दयारूपी अनुकूल पवन से प्रेरित हो दुष्कर्मियों का संहार करने के लिये दूर हटाकर विषाद में पड़े हुए मुझ दीनरूपी चात कपोत पर धनरूपी जलधारा की वृष्टि करें ।
प्रखर बुद्धि वाले मनुष्य जिनके प्रीतिपात्र होकर उनकी दयादृष्टि के प्रभाव से स्वर्गपद को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं, उन्हीं पद्मासना पद्मा की वह विकसित कमल-गर्भ के समान कान्तिमती दृष्टि मुझे मनोवांछित फल प्रदान करें ।
जो सृष्टि-लीला के समय वाग्देवता (ब्रह्मशक्ति) - के रूप में स्थित होती हैं, पालन-लीला करते समय भगवान् गरुडध्वज की सुन्दरी पत्नी लक्ष्मी (या वैष्णवी शक्ति) के रूप में विराजमान होती हैं तथा प्रलय-लीला के काल में शाकम्भरी (भगवती दुर्गा) अथवा चन्द्रशेखरवल्लभा पार्वती (रुद्रशक्ति) के रूप में अवस्थित होती हैं, उन त्रिभुवन के एकमात्र गुरु भगवान् नारायण की नित्ययौवना प्रेयसी श्रीलक्ष्मीजी को मेरा नमस्कार है ।
मातालक्ष्मी शुभ कर्मों का फल देने वाली श्रुति के रूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों की सिन्धुरूप रति के रूप में आपको नमस्कार है। कमलवन में निवास करने वाली शक्तिस्वरूपा लक्ष्मी को नमस्कार है तथा पुरुषोत्तमप्रिया पुष्टि को मेरा नमस्कार है ।
कमलवदना कमला को नमस्कार है। क्षीरसिन्धुसम्भूता श्रीदेवी को नमस्कार है। चन्द्रमा और सुधा की सगी बहिन को नमस्कार है। भगवान् नारायण की वल्लभा को मेरा नमस्कार है ।
कमलसदृश नेत्रों वाली माता आपके चरणों में की वन्दना के प्रभाव से भक्त को सम्पत्ति प्रदान कराने वाली, सम्पूर्ण इन्द्रियों को आनन्द देने वाली, साम्राज्य देने में समर्थवान और सारे पापों को हर लेने के लिये सर्वथा उद्यत हैं। वह सदा मुझे ही अवलम्बन करे (मुझे ही आपकी चरणवन्दनाका शुभ अवसर सदा प्राप्त होता रहे ।)
जिनके कृपाकटाक्ष के लिये की हुई उपासना उपासक के लिये सम्पूर्ण मनोरथों और सम्पत्तियों का विस्तार करती हैं, श्रीहरि की हृदयेश्वरी उन्हीं आप लक्ष्मीदेवी का मैं मन, वाणी और शरीर से भजन करता हूँ ।
भगवति हरिप्रिये ! आप कमलवन में निवास करने वाली हो, तुम्हारे हाथों में लीलाकमल सुशोभित है। तुम अत्यन्त उज्ज्वल वस्त्र, गन्ध और माला आदि से शोभा पा रही हो । तुम्हारी झाँकी बड़ी मनोरम है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करने वाली देवि ! मुझ पर प्रसन्न हो जाइये ।
दिग्गजों द्वारा सुवर्णकलश के मुख से गिराये गये आकाशगंगा के निर्मल एवं मनोहर जल से जिनके श्रीअंगों का अभिषेक (स्नानकार्य) सम्पादित होता है, सम्पूर्ण लोकों के अधीश्वर भगवान् विष्णु की प्राणवल्लभा और क्षीरसागर की पुत्री उन जगज्जननी लक्ष्मी को मैं प्रातःकाल प्रणाम करता हूँ ।
कमलनयन केशव की कमनीय कामिनी कमले ! मैं अकिंचन (दीनहीन) मनुष्यों में अग्रगण्य हूँ, अतएव मैं आपकी कृपा का स्वाभाविक पात्र हूँ। आप उमड़ती हुई करुणा की बाढ़ की तरल तरंगों के समान कटाक्षों द्वारा मेरी ओर निहारिये ।
जो लोग इन स्तुतियों द्वारा प्रतिदिन वेदत्रयीस्वरूपा त्रिभुवनजननी भगवती लक्ष्मी की स्तुति करते हैं, वे इस भूतल पर महान् गुणवान् और अत्यन्त सौभाग्यशाली होते हैं तथा विद्वान् पुरुष भी उनके मनोभाव को जानने के लिये उत्सुक रहते हैं ।
॥इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं कनकधारास्तोत्रं सम्पूर्णम्॥