Vedsar Shiv Stava (श्री वेदसार शिव स्तव:)

श्री वेदसार शिवस्तवः आदि शंकराचार्य रचित 

Vedsar Shiv Stava in Hindi 


वेदसार शिव स्तव एक प्रसिद्ध शिव स्तोत्र है, जिसमें भगवान शिव की महिमा और उनके अद्वितीय रूपों का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र भगवान शिव के महान गुणों और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए अत्यधिक प्रभावी माना जाता है।

यह स्तोत्र विशेष रूप से वेदों के सार के रूप में प्रस्तुत किया गया है और भगवान शिव को सम्पूर्ण ब्रह्मांड का आदित्य और कर्ता मानते हुए उनकी पूजा की जाती है।


पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य क्रत्तिं वसानं वरेण्यम् ।

जटाजूटमध्ये स्फुरद्गागवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम् ।।


🕉️ हिन्दी अर्थ:

हे महादेव! आप पशुओं के स्वामी, पापों का नाश करने वालेसबसे बड़े स्वामी (परमेश्वर) हैं। गजेन्द्र (हाथी) के क्रत्त (फूलों की माला) को धारण करने वाले, सर्वश्रेष्ठ, पूज्य (वरेण्य) देवता हैं। आपके जटाजूट (बालों के जट) में जो स्फुरित गागवाड़ी (नदी) है, महादेव को मैं स्मरण करता हूँ, जो स्मर (कामदेव) के भी शत्रु हैं।

 महेशं सुरेशं सुरारार्तिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम् ।

निरूपाक्षमिन्द्वर्कवहिनत्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभूं पञ्चवक्त्रम् ।।


🕉️ हिन्दी अर्थ:

महेशं (भगवान शिव को) सुरेशं (देवों के ईश्वर), सुरारार्तिनाशं (सुरों के शत्रु (राक्षसों) के दुःख का नाश करने वाले), विभुं (सर्वव्यापी और महान), विश्वनाथं (संसार के स्वामी), विभूत्यङ्गभूषम् (जो विभूतियों और आभूषणों से सुशोभित होते हैं), निरूपाक्षं (जिसका कोई रूप न हो, निराकार रूप में स्थित), इन्द्वर्कवहिनत्रिनेत्रं (जो चन्द्रमा और सूर्य के प्रकाश से प्रेरित त्रिनेत्र (तीन नेत्र) वाले हैं), सदानन्दमीडे (जो हमेशा आनंद में स्थित रहते हैं), प्रभूं पञ्चवक्त्रम् (जो पांच मुख वाले प्रभु हैं) — ऐसे भगवान शिव का मैं स्मरण करता हूँ।

गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेंद्राधिरूढं गणातीतरूपम् ।

भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्ग भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम् ।।


🕉️ हिन्दी अर्थ:

गिरीशं: गिरि (पर्वत) के ईश्वर यानी भगवान शिव को, जो सभी पर्वतों के स्वामी हैं, गणेशं: और गणों के स्वामी गणेश को, गले नीलवर्णं: जिनका गला नील (नील रंग) के विशाल साँप से सजा हुआ है, गवेंद्राधिरूढं: जो गायों के राजा (नंदी) पर आरूढ़ (सवार) हैं, गणातीतरूपम्: जिनका रूप गणों से परे है, अर्थात वे गणों के भी स्वामी हैं। भवं भास्वरं: जो भव (संसार) के शरीर को प्रकाशित करने वाले हैं, भस्मना भूषिताङ्ग: जिनके शरीर पर भस्म (राख) चढ़ी हुई है, जो उनकी निर्विकारता और साधना का प्रतीक है, भवानीकलत्रं: और जिनकी पत्नी भवानी (माता पार्वती) हैं, भजे पञ्चवक्त्रम्: मैं उन पाँच मुखों वाले भगवान शिव की पूजा करता हूँ।

शिवाकान्त शम्भो शशांकार्धमौले महेशान शूलिन् जटाजूटधारिन् ।

त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरुप प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्मरूप ।।


🕉️ हिन्दी अर्थ:

शिवाकान्त: भगवान शिव, जो शिव के परम प्रिय और आकर्षक हैं। शम्भो: शम्भू, भगवान शिव का एक नाम है, जो उनके सर्वशक्तिमान रूप को व्यक्त करता है। शशांकार्धमौले: आपके सिर पर चन्द्रमा का आधा भाग स्थित है, जो आपके सौम्यता और शीतलता का प्रतीक है। महेशान: आप महेश (संसार के स्वामी) हैं, अर्थात आप सबके परमेश्वर हैं। शूलिन्: शिव के हाथ में त्रिशूल (शूल) है, जो उनकी शक्ति और नियंत्रण का प्रतीक है। जटाजूटधारिन्: आपके सिर पर जटा (बालों का गुच्छा) है, जिसमें गंगा का वास है। त्वमेको: आप ही एकल (सर्वज्ञ और सर्वव्यापी) हैं। जगद्व्यापको: आप सर्व ब्रह्मांड में व्याप्त हैं, अर्थात आप सर्वव्यापी हैं। विश्वरुप: आप संसार के रूप में प्रकट होते हैं। प्रसीद प्रसीद प्रभो: कृपया करके हम पर कृपा करें, हमारी भक्ति स्वीकार करें। पूर्मरूप: आप पूर्ण रूप में हैं, अर्थात आप सभी गुणों और शक्तियों से परिपूर्ण हैं।

परात्मानमेकं जगद्विजमाद्यं निरीहं  निराकारमोंकारवेधम् ।

यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम् ।।


🕉️ हिन्दी अर्थ:

परात्मानमेकं: भगवान शिव एकल और परमात्मा हैं, जो सर्वव्यापी हैं। जगद्विजमाद्यं: वे सृष्टि के आदिकर्ता हैं, संसार के निर्माता हैं। निर्ईहं: वे निर्विकार, निर्गुण, और विकृति से परे हैं। निराकारमोंकारवेधम्: उनका रूप निराकार (आकार रहित) है, और वे ओंकार के रूप में प्रकट होते हैं, जो समग्र ब्रह्माण्ड का वेद और ध्वनि है। यतो जायते पाल्यते येन विश्वं: जिसके द्वारा संसार उत्पन्न होता है, और जिससे संसार का पालन और निराकरण होता है। तमीशं: वे ईश्वर हैं, जिनकी कोई सीमाएं नहीं हैं। भजे: मैं उनकी आराधना करता हूँ। लीयते यत्र विश्वम्: जहाँ संसार पूरी तरह से लीन हो जाता है, अर्थात भगवान शिव में सभी अस्तित्व का विलय हो जाता है।








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