श्री गणपति स्तोत्र
1. प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्। भक्तावासं स्मरेन्नित्यायुष्कामार्थसिद्धये ॥
👉 अर्थ: गौरी पुत्र भगवान गणेश को सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ। वे भक्तों में निवास करने वाले हैं। उनकी नित्य स्मृति से दीर्घायु और सभी कामनाओं की सिद्धि होती है।
2. प्रथमं वक्रतुंडं च एकदन्तं द्वितीयकम्। तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ॥
👉 अर्थ: गणेशजी के पहले नाम वक्रतुंड, दूसरे नाम एकदंत, तीसरे नाम कृष्णपिङ्गाक्ष, और चौथे नाम गजवक्त्र हैं।
3. लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च। सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टमम् ॥
👉 अर्थ: गणेशजी का पाँचवाँ नाम लम्बोदर, छठा विकट, सातवाँ विघ्नराज और आठवाँ नाम धूम्रवर्ण है।
4. नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्। एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ॥
👉 अर्थ: गणेशजी का नौवाँ नाम भालचन्द्र, दसवाँ विनायक, ग्यारहवाँ गणपति और बारहवाँ गजानन है।
5. द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः। न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ॥
👉 अर्थ: जो मनुष्य प्रातः, दोपहर और संध्या समय (त्रिसंध्या) इन बारह नामों का पाठ करता है, उसे किसी प्रकार का विघ्न नहीं होता और सभी कार्यों में सफलता मिलती है।
6. विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्। पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥
👉 अर्थ: इस स्तोत्र का पाठ करने से विद्यार्थी को विद्या मिलती है, धन चाहने वाले को धन, पुत्र की इच्छा करने वाले को पुत्र और मोक्ष की इच्छा करने वाले को मुक्ति प्राप्त होती है।
7. जपेद्गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत्। संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः ॥
👉 अर्थ: यदि कोई इस गणपति स्तोत्र का नियमित छह महीनों तक पाठ करता है तो उसे विशेष फल मिलता है और एक वर्ष में पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती है। इसमें कोई संदेह नहीं।
8. अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत्। तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ॥
👉 अर्थ: जो व्यक्ति इस स्तोत्र को लिखकर आठ ब्राह्मणों को अर्पित करता है, उसे समस्त विद्याओं की प्राप्ति होती है। यह सब गणेशजी की कृपा से संभव है।