श्री शिवाष्टकम् स्तोत्रम् Shivasktakam stotram
श्री शिवाष्टकम् एक सुंदर और शक्तिशाली स्तोत्र है जो भगवान शिव की महिमा का गुणगान करता है। यह आठ श्लोकों (अष्टक) में भगवान शिव के विभिन्न रूपों, गुणों और कृपा की स्तुति करता है। यह स्तोत्र भक्तों को भक्ति, वैराग्य और शिव की कृपा दिलाने में सहायक माना जाता है।
नीचे श्री शिवाष्टकम् संस्कृत श्लोकों सहित और उनके साथ हिन्दी अर्थ प्रस्तुत है:
🕉️ प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं जगन्नाथ नाथं सदानन्दभावम् ।
भवद्भव्यभूतेश्वरं भूतनाथं शिवं शङ्करं शम्भूमीशानमीडे ।। 1. ।।
🕉️ हिन्दी अर्थ:
मैं उस भगवान शिव की स्तुति करता हूँ जो — प्रभु हैं (सभी के स्वामी), प्राणनाथ हैं (सभी जीवों के जीवन के स्वामी), विभु हैं (सर्वव्यापी), विश्वनाथ हैं (समस्त ब्रह्मांड के स्वामी), जगन्नाथनाथं (जगत के नाथों के भी नाथ), सदैव आनन्दभाव से युक्त हैं, भव, भविष्य, और भूतकाल के ईश्वर हैं, भूतनाथ हैं (सभी प्राणियों के स्वामी), तथा वे शिव, शंकर, शम्भु, और ईशान हैं — मैं उन परम भगवान शिव की भक्ति और वंदना करता हूँ।
गले रूण्डमालं तनौ सर्पजालं महाकालकालं गणेशाधिपालम् ।
जटाजूटगङ्गोत्तरङ्गैर्विशालं शिवं शङ्करं शम्भूमीशानमीडे ।। 2. ।।
🕉️ हिन्दी अर्थ:
मैं उन ईशानरूप शिव की वंदना करता हूँ — जिनके गले में नरमुंडों की माला है, जिनके शरीर पर सर्पों का जाल लिपटा हुआ है, जो महाकाल के भी काल हैं (अर्थात समय और मृत्यु के भी स्वामी), जो गणेशजी के भी अधिपति (स्वामी) हैं, जिनकी जटाओं से गंगा की लहरें बहती हैं, और जिनका रूप अत्यंत विशाल और दिव्य है। वे ही शिव, शंकर, शम्भु, और ईशान हैं — मैं उनकी स्तुति करता हूँ।
मुदामाकरं मण्डनं मण्डयन्तं महामण्डलं भस्मभूषाधरं तम् ।
अनादिह्यपारं महामोहहारं शिवं शङ्करं शम्भूमीशानमीडे ।। 3. ।।
🕉️ हिन्दी अर्थ:
मैं उन ईशान रूपी शिव की स्तुति करता हूँ — जो आनंद के स्रोत हैं, जो इस सृष्टि को सुशोभित करते हैं, जो सम्पूर्ण जगत को अपने तेज से प्रकाशित करते हैं, जो अपने शरीर को भस्म से विभूषित रखते हैं, जो अनादि (जिसका कोई आदि नहीं), अपार (जिसकी कोई सीमा नहीं), और महामोह (अज्ञान और भ्रम) का नाश करने वाले हैं।
वटाधोनिवासं महाट्टाट्टहासं महापापनाशं सदासुप्रकाशम् ।
गिरीशं गणेशं महेशं सुरेशं शिवं शङ्करं शम्भूमीशानमीडे ।। 4. ।।
🕉️ हिन्दी अर्थ:
मैं उन ईशानरूप शिव की वंदना करता हूँ — जो वटवृक्ष के नीचे निवास करते हैं (सादगी और वैराग्य का प्रतीक), जिनकी हँसी गूँजती हुई (महाट्टहास) होती है, जो महान पापों का भी नाश करने में सक्षम हैं, जो सदैव प्रकाशस्वरूप हैं, जो गिरीश (पर्वतराज के स्वामी), गणेश के पिता, महेश (महान ईश्वर), और सुरेश (देवताओं के स्वामी) हैं। वे ही शिव, शंकर, शम्भु, और ईशान हैं — मैं उनकी स्तुति करता हूँ ।
गिरिन्द्रात्मजासंग्रहीतार्धदेहं गिरौ संस्थितं सर्वदा सन्नगेहम् ।
परब्रह्मब्रह्मादिभिर्वन्ध्यमानं शिवं शङ्करं शम्भूमीशानमीडे ।। 5. ।।
🕉️ हिन्दी अर्थ:
मैं उन ईशान रूपी शिव की वंदना करता हूँ — जिन्होंने पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती को अपने आधे शरीर में धारण किया है (अर्धनारीश्वर रूप में), जो पर्वत (कैलाश) पर निवास करते हैं और वहीं उनका स्थायी धाम है, जो सदैव सन्न्यासियों और साधकों के हृदय में निवास करते हैं, जो परब्रह्म हैं — और ब्रह्मा आदि देवताओं द्वारा भी वंदनीय हैं, वे ही शिव, शंकर, शम्भु, और ईशान हैं — मैं उनकी स्तुति करता हूँ।
कपालं त्रिशूलं कराभ्यां दधानं पदाम्भोजनम्राय कामं ददानम् ।
बलीवर्दयानं सुराणां प्रधानं शिवं शङ्करं शम्भूमीशानमीडे ।। 6. ।।
🕉️ हिन्दी अर्थ:
मैं उन ईशान रूपी शिव की वंदना करता हूँ — जो अपने दोनों हाथों में कपाल (खोपड़ी) और त्रिशूल धारण किए रहते हैं, जो अपने कमल के समान चरणों में नम्रतापूर्वक झुकने वाले भक्त को मनवांछित फल प्रदान करते हैं, जो बैल (नंदी) को वाहन के रूप में धारण करते हैं, और जो सभी देवताओं के भी प्रमुख (प्रधान) हैं — वे ही शिव, शंकर, शम्भु, और ईशान हैं — मैं उनकी स्तुति करता हूँ।
शरच्चन्द्रगात्रं गुणानन्द पात्रं त्रिनेत्रं पवित्रं धनेशस्य मित्रम् ।
अपर्णाकलत्रं चरित्रं विचित्रं शिवं शङ्करं शम्भूमीशानमीडे ।। 7. ।।
🕉️ हिन्दी अर्थ:
मैं उन ईशान रूपी शिव की वंदना करता हूँ — जिनका शरीर शरद ऋतु के चंद्रमा के समान शांत, उज्ज्वल और शीतल है, जो संपूर्ण गुणों से युक्त हैं और आनंद का स्रोत हैं, जो तीन नेत्रों वाले, अत्यंत पवित्र हैं, जो कुबेर (धनपति) के मित्र हैं, जिनकी पत्नी अपर्णा (पार्वती जी) हैं, और जिनका चरित्र अद्भुत, रहस्यमय और विलक्षण है — वे ही शिव, शंकर, शम्भु, और ईशान हैं — मैं उनकी स्तुति करता हूँ।
हरं सर्पहारं चिता भूविहारं भवं वेदसारं सदा निर्विकारम् ।
श्मशाने वसन्तं मनोजं दहन्तं शिवं शङ्करं शम्भूमीशानमीडे ।। 8. ।।
🕉️ हिन्दी अर्थ:
मैं उन ईशान रूपी शिव की वंदना करता हूँ — जो हर (विनाशक) हैं, जिनके गले में सर्पों की माला है, जो चिता (श्मशान भूमि) में विचरण करते हैं, जो भव (संसार) से परे, परंतु वेदों के सार हैं, जो सदैव निर्विकार (जिनमें कोई विकार या परिवर्तन नहीं होता), जो श्मशान में निवास करते हैं, जिन्होंने कामदेव (मनोज) को भस्म किया था, वे ही शिव, शंकर, शम्भु, और ईशान हैं — मैं उनकी स्तुति करता हूँ।
स्तवं यः प्रभाते नरः शूलपाणे पठेत् सर्वदा भर्गभावानुरक्तः ।
स पुत्रं धनं धान्यमित्रं कलत्रं विचित्रं समासाद्य मोक्ष प्रयाति ।। 9. ।।
🕉️ हिन्दी अर्थ:
जो मनुष्य प्रातःकाल भगवान शूलपाणि (त्रिशूलधारी शिव) की इस स्तुति का पाठ करता है, और जो भगवान शिव के स्वरूप में अनुरक्त (प्रेममग्न) रहता है — उसे इस संसार में पुत्र, धन, धान्य (अन्न), मित्र, और पत्नी (कलत्र) जैसे सभी भौतिक सुख प्राप्त होते हैं, और अंत में वह मोक्ष (मुक्ति) को प्राप्त करता है।
।। इति शिवाष्टकम् सम्पूर्णम् ।।