तुलसी संग्रह सम्पूर्ण

AnandShastri
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तुलसी संग्रह सम्पूर्ण


तुलसी से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं। तलसी के पत्तों के बिना भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा अधूरी मानी जाती हैं,तुलसी के पत्तों के साथ हीं भगवान को भोग लगाते हैं हर साल कार्तिक शुक्लपक्ष एकादशी पर तुलसी विवाह पर्व मनाते हैं,इस पर्व में तुलसी का शालिग्राम जी के साथ विवाह कराया जाता हैं तुलसी लगानें से घर में सकारात्मकता और पवित्रता बनी रहती हैं । तुलसी को घर के आंगन में लगाते हैं और रोज सुबह जल चढ़ाते हैं,शाम को तुलसी के पास दीपक जलाया जाता हैं


तुलसी स्तुति,

तुलसी श्रीसखि शुभे पापहारिणि पुण्यप्रदे , नमस्ते नारदनुते नारायणमनः प्रिये ।। 1 ।।
मनः प्रसादजननि सुखसौभाग्यदायिनि , आधिव्याधिहरे देवि तुलसि त्वां नमाम्यहम् ।। 2 ।।
यन्मूलेसर्वतीर्थानि यन्मध्ये सर्वदेवताः , यदग्ने सर्ववेदाश्च तुलसी त्वां नमाम्यहम् ।। 3 ।।
अमृतां सर्वकल्याणिं शोकसन्तापनाशिनीम् , आधिव्याधिहरीं नृणां तुलसी त्वां नमाम्यहम् ।। 4 ।।
देवैस्त्वं निर्मिता पूर्व अर्चितासि मुनीश्वरैः , नमो नमस्ते तुलसि पापं हर हरिप्रिये ।। 5 ।।
सौभाग्यं सन्ततिं देवि धनं धान्यं च सर्वदा , आरोग्यं शोकशमनं कुरू में माधवप्रिये ।। 6 ।।
तुलसी पातु मां नित्यं सर्वापद्भ्योऽपि सर्वदा , कीर्तिताऽपि स्मृता वाऽपि पवित्रयति मानवम् ।। 7 ।।
या दृष्टा निखिलाघसङ्घशमनी स्पृष्टा वपुःपावनी , रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्ताऽन्तकत्रासिनी ।। 8 ।।
प्रत्यासत्तिविधायिनी भगवतः कृष्णस्य संरोपिता , न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नमः ।। 9 ।।


तुलसी स्तोत्र

जगद्धात्रि नमस्तुभ्यं विष्णोश्च प्रियवल्लभे । यतो ब्रह्मादयो देवाः सृष्टिस्थित्यन्तकारिणः ॥१॥
नमस्तुलसि कल्याणि नमो विष्णुप्रिये शुभे । नमो मोक्षप्रदे देवि नमः सम्पत्प्रदायिके ॥२॥
तुलसी पातु मां नित्यं सर्वापद्भ्योऽपि सर्वदा । कीर्तितापि स्मृता वापि पवित्रयति मानवम् ॥३॥
नमामि शिरसा देवीं तुलसीं विलसत्तनुम् । यां दृष्ट्वा पापिनो मर्त्या मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषात् ॥४॥
तुलस्या रक्षितं सर्वं जगदेतच्चराचरम् । या विनिहन्ति पापानि दृष्ट्वा वा पापिभिर्नरैः ॥५॥
नमस्तुलस्यतितरां यस्यै बद्ध्वाञ्जलिं कलौ । कलयन्ति सुखं सर्वं स्त्रियो वैश्यास्तथाऽपरे ॥६॥
तुलस्या नापरं किञ्चिद् दैवतं जगतीतले । यथा पवित्रितो लोको विष्णुसङ्गेन वैष्णवः ॥७॥
तुलस्याः पल्लवं विष्णोः शिरस्यारोपितं कलौ । आरोपयति सर्वाणि श्रेयांसि वरमस्तके ॥८॥
तुलस्यां सकला देवा वसन्ति सततं यतः । अतस्तामर्चयेल्लोके सर्वान् देवान् समर्चयन् ॥९॥
नमस्तुलसि सर्वज्ञे पुरुषोत्तमवल्लभे । पाहि मां सर्वपापेभ्यः सर्वसम्पत्प्रदायिके ॥१०॥
इति स्तोत्रं पुरा गीतं पुण्डरीकेण धीमता । विष्णुमर्चयता नित्यं शोभनैस्तुलसीदलैः ॥११॥
तुलसी श्रीमहालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी । धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमनः प्रिया ॥१२॥
लक्ष्मीप्रियसखी देवी द्यौर्भूमिरचला चला । षोडशैतानि नामानि तुलस्याः कीर्तयन्नरः ॥१३॥
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत् । तुलसी भूर्महालक्ष्मीः पद्मिनी श्रीर्हरिप्रिया ॥१४॥
तुलसि श्रीसखि शुभे पापहारिणि पुण्यदे । नमस्ते नारदनुते नारायणमनः प्रिये ॥१५॥
॥ श्रीपुण्डरीककृतं तुलसीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥


तुलसी आरती

तुलसी कृष्णा प्रेयसी नमो नमों । राधा कृष्णा सेवा पाबो एई अभिलाषी
ये तोमार शरण लोय, तारा वांछा पूर्ण होय । कृपा करी कोरो तारे वृंदावन वासीं
मोरा एई अभिलाष विलास कुंजे दिओ वास । नयन हेरीबो सदा युगल रूप रासि
एई निवेदन धर सखीर अनुगत कोरो । सेवा अधिकार दिए कोरो निज दासी
दिन कृष्णा दासे कोय एई येन मोरा होय । श्री राधा गोविंद प्रेमे सदा येन भासिं
यानि कानि च पापानी ब्रह्म हत्यदिकानी च,तानि तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिणः पदे पदे


तुलसी चालीसा

दोहा-श्री तुलसी महरानी,करूं विनय सिरनाय । जो मम हो संकट विकट, दीजै मात नशाय।।
नमो नमो तुलसी महारानी, महिमा अमित न जाय बखानी । दियो विष्णु तुमको सनमाना, जग में छायो सुयश महाना।।
विष्णुप्रिया जय जयतिभवानि, तिहूँ लोक की हो सुखखानी । भगवत पूजा कर जो कोई, बिना तुम्हारे सफल न होई।।
जिन घर तव नहिं होय निवासा, उस पर करहिं विष्णु नहिं बासा । करे सदा जो तव नित सुमिरन, तेहिके काज होय सब पूरन।।
कातिक मास महात्म तुम्हारा, ताको जानत सब संसारा । तव पूजन जो करैं कुंवारी, पावै सुन्दर वर सुकुमारी।।
कर जो पूजन नितप्रति नारी, सुख सम्पत्ति से होय सुखारी । वृद्धा नारी करै जो पूजन, मिले भक्ति होवै पुलकित मन।।
श्रद्धा से पूजै जो कोई, भवनिधि से तर जावै सोई । कथा भागवत यज्ञ करावै, तुम बिन नहीं सफलता पावै।।
छायो तब प्रताप जगभारी, ध्यावत तुमहिं सकल चितधारी । तुम्हीं मात यंत्रन तंत्रन, सकल काज सिधि होवै क्षण में।।
औषधि रूप आप हो माता, सब जग में तव यश विख्याता । देव रिषी मुनि औ तपधारी, करत सदा तव जय जयकारी।।
वेद पुरानन तव यश गाया, महिमा अगम पार नहिं पाया । नमो नमो जै जै सुखकारनि, नमो नमो जै दुखनिवारनि।।
नमो नमो सुखसम्पति देनी, नमो नमो अघ काटन छेनी । नमो नमो भक्तन दुःख हरनी, नमो नमो दुष्टन मद छेनी।।
नमो नमो भव पार उतारनि, नमो नमो परलोक सुधारनि । नमो नमो निज भक्त उबारनि, नमो नमो जनकाज संवारनि।।
नमो नमो जय कुमति नशावनि, नमो नमो सुख उपजावनि । जयति जयति जय तुलसीमाई, ध्याऊँ तुमको शीश नवाई।।
निजजन जानि मोहि अपनाओ, बिगड़े कारज आप बनाओ । करूँ विनय मैं मात तुम्हारी, पूरण आशा करहु हमारी।।
शरण चरण कर जोरि मनाऊं, निशदिन तेरे ही गुण गाऊं । क्रहु मात यह अब मोपर दाया, निर्मल होय सकल ममकाया।।
मंगू मात यह बर दीजै, सकल मनोरथ पूर्ण कीजै । जनूं नहिं कुछ नेम अचारा, छमहु मात अपराध हमारा।।
बारह मास करै जो पूजा, ता सम जग में और न दूजा । प्रथमहि गंगाजल मंगवावे, फिर सुन्दर स्नान करावे।।
चन्दन अक्षत पुष्प् चढ़ावे, धूप दीप नैवेद्य लगावे । करे आचमन गंगा जल से, ध्यान करे हृदय निर्मल से।।
पाठ करे फिर चालीसा की, अस्तुति करे मात तुलसा की । यह विधि पूजा करे हमेशा, ताके तन नहिं रहै क्लेशा।।
करै मास कार्तिक का साधन, सोवे नित पवित्र सिध हुई जाहीं । है यह कथा महा सुखदाई, पढ़े सुने सो भव तर जाई।।
तुलसी मैया तुम कल्याणी, तुम्हरी महिमा सब जग जानी । भाव ना तुझे माँ नित नित ध्यावे, गा गाकर मां तुझे रिझावे।।

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