🕉️ माँ लक्ष्मी स्तुति
आदि लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु परब्रह्म स्वरूपिणि । यशो देहि धनं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ॥
सन्तान लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु पुत्र-पौत्र प्रदायिनि । पुत्रां देहि धनं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ॥
विद्या लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु ब्रह्म विद्या स्वरूपिणि। विद्यां देहि कलां देहि सर्व कामांश्च देहि मे ॥
धन लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्व दारिद्र्य नाशिनि । धनं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ॥
धान्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्वाभरण भूषिते । धान्यं देहि धनं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ॥
मेधा लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु कलि कल्मष नाशिनि । प्रज्ञां देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ॥
गज लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्वदेव स्वरूपिणि । अश्वांश गोकुलं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ॥
धीर लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु पराशक्ति स्वरूपिणि। वीर्यं देहि बलं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ॥
जयलक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्व कार्य जयप्रदे। जयं देहि शुभं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ॥
भाग्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सौमाङ्गल्य विवर्धिनि । भाग्यं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ॥
कीर्ति लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु विष्णुवक्ष स्थल स्थिते । कीर्ति देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ॥
आरोग्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्व रोग निवारणि । आयुर्देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ॥
सिद्ध लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्व सिद्धि प्रदायिनि । सिद्धिं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ॥
सौन्दर्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्वालङ्कार शोभिते। रूपं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ॥
साम्राज्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु भुक्ति मुक्ति प्रदायिनि । मोक्षं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ॥
मङ्गले मङ्गलाधारे माङ्गल्ये मङ्गल प्रदे। मङ्गलार्थं मङ्गलेशि माङ्गल्यं देहि मे सदा ॥
सर्व मङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके । शरण्ये त्रयम्बके देवि नारायणि नमोऽस्तुते ॥
इन्द्रकृत लक्ष्मी स्तोत्रम्
ॐ नमो महालक्ष्म्यै ।
पद्मपत्रेक्षणायै च पद्मास्यायै नमो नमः । पद्मासनायै पद्मिन्यै वैष्णव्यै च नमो नमः ॥
सर्वसम्पत्स्वरूपायै सर्वदात्र्यै नमो नमः । सुखदायै मोक्षदायै सिद्धिदायै नमो नमः ॥
हरिभक्तिप्रदात्र्यै च हर्षदात्र्यै नमो नमः । कृष्णवक्षः स्थितायै च कृष्णेशायै नमो नमः ॥
कृष्णशोभास्वरूपायै रत्नपद्मे च शोभने । सम्पत्त्यधिष्ठातृदेव्यै महादेव्यै नमो नमः ॥
शस्याधिष्ठातृदेव्यै च शस्यायै च नमो नमः । नमो बुद्धिस्वरूपायै बुद्धिदायै नमो नमः ॥
वैकुण्ठे या महालक्ष्मीर्लक्ष्मीः क्षीरोदसागरे । स्वर्गलक्ष्मीरिन्द्रगेहेराजलक्ष्मीर्नृपालये ॥
गृहलक्ष्मीश्च गृहिणां गेहे च गृहदेवता । सुरभी सा गवां माता दक्षिणा यज्ञकामिनी ॥
अदितिर्देवमाता त्वं कमला कमलालये । स्वाहा त्वं च हविर्दाने कव्यदाने स्वधा स्मृता ॥
त्वं हि विष्णुस्वरूपा च सर्वाधारा वसुन्धरा । शुद्धसत्त्वस्वरूपा त्वं नारायणपरायणा ॥
क्रोधहिंसावर्जिता च वरदा च शुभानना । परमार्थप्रदा त्वं च हरिदास्यप्रदा परा ॥
यया विना जगत् सर्वं भस्मीभूतमसारकम् । जीवन्मृतं च विश्वं च शवतुल्यं यया विना ॥
सर्वेषां च परा त्वं हि सर्वबान्धवरूपिणी । यया विना न सम्भाष्यो बान्धवैर्बान्धवः सदा ॥
त्वया हीनो बन्धुहीनस्त्वया युक्तः सबान्धवः । धर्मार्थकाममोक्षाणां त्वं च कारणरूपिणी ॥
यथा माता स्तनन्धानां शिशूनां शैशवे सदा । तथा त्वं सर्वदा माता सर्वेषां सर्वरूपतः ॥
मातृहीनः स्तनत्यक्तः स चेज्जीवति दैवतः । त्वया हीनो जनः कोऽपि न जीवत्येव निश्चितम् ॥
सुप्रसन्नस्वरूपा त्वं मां प्रसन्ना भवाम्बिके । वैरिग्रस्तं च विषयं देहि मह्यं सनातनि ॥
वयं यावत् त्वया हीना बन्धुहीनाश्च भिक्षुकाः । सर्वसम्पद्विहीनाश्च तावदेव हरिप्रिये ॥
राज्यं देहि श्रियं देहि बलं देहि सुरेश्वरि । कीर्ति देहि धनं देहि यशो मह्यं च देहि वै ॥
कामं देहि मतिं देहि भोगान् देहि हरिप्रिये । ज्ञानं देहि च धर्म च सर्वसौभाग्यमीप्सितम् ॥
प्रभावं च प्रतापं च सर्वाधिकारमेव च । जयं पराक्रमं युद्धे परमैश्वर्यमेव च ॥
इत्युक्त्वा च महेन्द्रश्च सर्वैः सुरगणैः सह । प्रणनाम साश्रुनेत्रो मूर्धा चैव पुनः पुनः ॥
ब्रह्मा च शंकरश्चैव शेषो धर्मश्च केशवः । सर्वे चक्रुः परीहारं सुरार्थे च पुनः पुनः ॥
देवेभ्यश्च वरं दत्त्वा पुष्पमालां मनोहराम् । केशवाय ददौ लक्ष्मीः संतुष्टा सुरसंसदि ॥
ययुर्देवाश्च संतुष्टाः स्वं स्वं स्थानं च नारद । देवी ययौ हरेः क्रोडं हृष्टा क्षीरोदशायिनः ॥
ययतुश्चैव स्वगृहं ब्रह्मेशानौ च नारद । दत्त्वा शुभाशिषं तौ च देवेभ्यः प्रीतिपूर्वकम् ॥
इदं स्तोत्रं महापुण्यं त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः । कुबेरतुल्यः स भवेद् राजराजेश्वरो महान् ॥
सिद्धस्तोत्रं यदि पठेत् सोऽपि कल्पतरुर्नरः । पञ्चलक्षजपेनैव स्तोत्रसिद्धिर्भवेन्नृणाम् ॥
सिद्धिस्तोत्रं यदि पठेन्मासमेकं च संयतः । महासुखी च राजेन्द्रो भविष्यति न संशयः ॥
॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्ते ध्यानमन्त्रसहितमिन्द्रकृतं लक्ष्मीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
श्री लक्ष्मी चालिसा
दोहा - मातु लक्ष्मी करि कृपा करो हृदय में वास ।
मनोकामना सिद्ध करि, पुरवहु मेरी आस ।।
सोरठा- यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करूँ।
सबविधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका ।।
सिन्धु सुता मैं सुमिरौं तोही । ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोही ।।
तुम समान नहिं कोई उपकारी । सब विधि पुरवहु आस हमारी ।।
जय जय जगत् जननि जगदम्बा। सबकी तुम ही हो अविलम्बा ।।
तुम ही हो सब घट घट वासी । विनती यही हमारी खासी ।।
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी ।।
विनवौँ नित्य तुमहिं महारानी कृपा करौ जग जननी भवानी।।
केहि विधि स्तुति करौँ तिहारी । सुधि लीजै अपराध बिसारी ।।
कृपा दृष्टि चितवो मम ओरी । जगजननी विनती सुन मोरी ।।
ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता । संकट हरो हमारी माता ।।
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायों । चौदह रत्न सिन्धु में पायो ।।
चौदह रत्न में तुम सुखरासी । सेवा कियो प्रभु बनि दासी ।।
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा । रूप बदल तहं सेवा कीन्हा ॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा । लीन्हेउ अबधपुरी अवतारा ।।
तब तुम प्रगट जनकपुरी माहीं । सेवा कियो हृदय पुलकाहीं ।।
अपनायौँ तोहि अर्न्तयामी । विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी ।।
तुम सम प्रबल शक्ति नहिं आनी । कहं लौ महिमा कहाँ बखानी ।।
मन क्रम वचन करै सेवकाई । मन इच्छित वांछित फल पाई ।।
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मन लाई ।।
और हाल मैं कहाँ बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई ।।
ताको कोई कष्ट न होई । मन इच्छित पावै फल सोई ।।
त्राहि-त्राहि जय दुख निवारणी । त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी ।।
जो यह चालीसा पढ़ें- पढ़ावै । ध्यान लगाकर सुनै- सुनावै ।।
ताकौ कोई न रोग सतावै । पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै ।।
पुत्रहीन अरु संपत्ति हीना । अंध बधिर कोढ़ी अति दीना ।।
विप्र बोलाय के पाठ करावै । शंका दिल में कभी न लावै ।।
पाठ करावै दिन चालीसा । ता पर कृपा करें गौरीसा ।।
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै । कमी नहीं काहू की आवै ।।
प्रतिदिन पाठ करो मन माही। उन सम कोई जग में कहुं नाहीं । ।
बहुविधि क्या मैं करौ बड़ाई । लेय परीक्षा ध्यान लगाई ।।
करि विश्वास करै व्रत नेमा । होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा ।।
जय-जय-जय लक्ष्मी भवानी। सबमें व्यापित हो गुण खानी ।।
तुम्हरो तेज़ प्रबल जग माहीं । तुम सम कोऊ दयालु कहुं नाहिं ।।
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै । संकट काटि भक्ति मोहि दीजै ।।
भूल चूक करि क्षमा हमारी । दर्शन दीजै दशा निहारी।।
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी । तुमहि अक्षत दुख सहते भारी ।।
नहिं मोहि ज्ञान बुद्धि है तन में। सब जानत हो अपने मन में ।।
रूप चतुर्भुज करके धारण । कष्ट मोर अब करहु निवारण ।।
केहि प्रकार मैं करों बड़ाई । ज्ञान मोहि नहिं अधिकाई ॥
दोहा - त्राहि-त्राहि दुख हारिणी, हरो बेगि सब त्रास ।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश ।।
रामदास घरि ध्यान नित्, विनय करत कर जोर ।
मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर ।।
श्री महालक्ष्मी अष्टकम्
नमस्ते स्तु महामाये श्रीपीठे सुर पूजिते ।
शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते ।। १ ।।
नमस्ते गरुड़ारूढ़े कोलासुर भयंकरि ।
सर्व पापहरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते ।। २ ।।
सर्वज्ञे सर्व वरदे सर्वदुष्ट भयंकरि ।
सर्व दु:ख हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते ।। ३ ।।
सिद्धिबुद्धि प्रदे देवि भुक्ति सुक्ति प्रदायिनि ।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते ।। ४ ।।
आद्यन्त रहिते देवि आद्यशक्ति महेश्वरी ।
यो गजे योग सम्भूते महालक्ष्मी नमोस्तुते ।। ५ ।।
स्थूल सूक्ष्म महारौद्रे महाशक्ति महोदरे ।
महापाप हरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते ।। ६ ।।
पद्मासन स्थिते देवि परब्रहमस्वरूपिणि ।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोस्तुते ।। ७ ।।
शवेताम्बर धरे देवि नानालंकार भूषिते ।
जगात्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोस्तुते ।। ८ ।।


shastrianand701@gmail.com