शिव स्तुति
जय शम्भूनाथ दिगंबरम् ,जय शम्भूनाथ दिगंबरम् । करूणाकरं जगदीश्वरम् ।।2।।
भवतारणम् भयहारणम् , भवतारणम् भयहारणम् । करूणाकरं जगदीश्वरम् ।।
मृगछाल अंग शुशोभितम् , करमाल दंड बिराजितम् ।।1।।
यमकाल पासबिमोचकम् , यमकाल पासबिमोचकम् ।। करूणाकरं जगदीश्वरम् ।।
जय शम्भूनाथ दिगंबरम् ,जय शम्भूनाथ दिगंबरम् । करूणाकरं जगदीश्वरम् ।।
गलरूण्डमाल कपालब्याल , तनभस्म शोभित सुन्दरम् ।।
तवशक्ति अंग शुशोभितम् , तवशक्ति अंग शुशोभितम् । करूणाकरं जगदीश्वरम् ।।
जय शम्भूनाथ दिगंबरम् ,जय शम्भूनाथ दिगंबरम् । करूणाकरं जगदीश्वरम् ।।
हे दक्क्षयग्ज्ञ बिनाशकम् , हे कामदाहन कारणम् ।।
श्री गणेशस्कंद नमस्कृतम् , श्री गणेशस्कंद नमस्कृतम् । करूणाकरं जगदीश्वरम् ।।
जय शम्भूनाथ दिगंबरम् ,जय शम्भूनाथ दिगंबरम् । करूणाकरं जगदीश्वरम् ।।
हे आशुतोष शशांकशेखर , चन्द्रमौलिमृतुंज्जयम् ।।
तवपादकमल नमाम्यहम् , तवपादकमल नमाम्यहम् । करूणाकरं जगदीश्वरम् ।।
जय शम्भूनाथ दिगंबरम् ,जय शम्भूनाथ दिगंबरम् । करूणाकरं जगदीश्वरम् ।।
भवतारणम् भयहारणम् , भवतारणम् भयहारणम् । करूणाकरं जगदीश्वरम् ।।
कृतेन अनेन अद्यदिने शिवस्तोत्रपाठाख्येन , कर्मणा-कर्मणा धिश्वर भवानीशंकर , महारूद्र महामृत्युञ्जय , श्री भगवत् केदारेश्वर चरणारविन्दं प्रियतां नममः , श्री साष्टाङ्ग शिवार्पण मस्तु शिवादैः इदम् नममः , श्री साष्टाङ्ग जगदम्बार्पण मस्तु अम्बाः प्रियताम् नमम्ः , हरहः ओम् तत्सत् , हरहः ओम् तत्सत् , हरहः ओम् तत्सत् ।।
शिव रूद्राष्टकम्
नमामि शमीशान निर्वाण रूपं । विभु व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं ।।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं । चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं ।।
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं । गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं ।।
करालं महाकाल कालं कृपालं । गुणागार संसारपारं नतोऽहं ।।
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं । मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं ।।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दु कंठे भुजंगा ।।
चलत्कुंडलं भ्रू सुनेत्रं विशालं । प्रसन्नानं नीलकंठं दयालं ।।
मृगाधीशमर्चाम्बरं मुण्डमालं । प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ।।
प्रचंडं प्रकृष्ठं प्रगल्भं परेशं । अखंडं अजं भानुकोटि प्रकाशं ।।
त्रयःशूल निर्मूलनं शूलपाणिं । भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं ।।
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी । सदा सज्जनानन्दाता पुरारी ।।
चिदानंद संदोह मोहापहारी । प्रसीद प्रसीद प्रभां मन्मथारी ।।
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं । भजंतीह लोके परे वा नराणां ।।
न तावत्सुखं शांन्ति संतापनाशं । प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ।।
न जानामि योगं जपं नैव पूजां । नतोऽहंसदा सर्वदा शंभु तुभ्यं ।।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं । प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ।।
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तंविप्रेण हरतोषये । ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ।।
शिवताण्डव स्तोत्रम्
जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम् । डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥
जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी । विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि । धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके । किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥
धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर । स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे । कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि । कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥
जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा । कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे । मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे । मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥
सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर । प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः । भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः । श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥
ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा । निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम् । सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं । महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥6॥
कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल । द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके । धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक । प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥7॥
नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर । त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः । निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः । कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥
प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा । विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम् । स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं । गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥
अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी । रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् । स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं । गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥
जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर । द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट् । धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल ।ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो । र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः । तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः । समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥12॥
कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन् । विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन् । विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः । शिवेति मंत्रमुच्चरन्कदा सुखी भवाम्यहम्॥13॥
निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका । निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः । तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं । परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14॥
प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी । महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना । विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः । शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥15॥
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं । पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम् । हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं । विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम ॥16॥
पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं । यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे । तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां । लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥17॥
॥ इति शिव तांडव स्तोत्रं संपूर्णम्॥
शंकराचार्य द्वारा रचित शिव स्तुति
पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम | जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम ।।
महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम् । विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम् ।।
गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्। भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम् ।।
शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन् । त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूपः प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप ।।
परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम् । यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम् ।।
न भूमिर्न चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा । न गृष्मो न शीतं न देशो न वेष न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्ति तमीड ।।
अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्। तुरीयं तमः पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम ।।
नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते । नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम् ।।
प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत् । शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्यः ।।
शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन् । काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि ।।
त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ । त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन ।।
शिव छमाप्रार्थना
वन्दे देवमुमापतिं सुरगुरुं वन्दे जगत्कारणं (शम्भुमुमापतिं) वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं वन्दे पशूनां पतिम् । वन्दे सूर्यशशाङ्कवह्निनयने वन्दे मुकुन्दप्रियं वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शङ्करम् ॥ १॥
वन्दे सर्वजगद्विहारमतुलं वन्देऽन्धकध्वंसिनं वन्दे देवशिखामणि शशिनिभं वन्दे हरेर्वल्लभम् । वन्दे नागभुजङ्गभूषणधरं वन्दे शिवं चिन्मयं वन्दे भक्तजनाश्रये च वरदं वन्दे शिवं शङ्करम् ॥ २॥
वन्दे निर्मलमादिमूलमनिशं वन्दे मखध्वंसिनम् । वन्दे सत्यमनन्तमाद्यमभयं वन्देऽतिशान्ताकृतिं (वन्देनित्यमगेन्द्रजाप्रियकरं) वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शङ्करम् ॥ ३॥
वन्दे भूरथमम्बुजाक्षविशिखं वन्दे श्रुतित्रोटकं (वन्दे त्रयीवाजिनं) वन्दे शैलशरासनं फणिगुणं वन्देऽब्धितूणीरकम् । वन्दे पद्मजसारथिं पुरहरं वन्दे महाभैरवं वन्दे भक्तजनाश्रयञ्च वरदं वन्दे शिवं शङ्करम् ॥ ४ ॥
वन्दे पञ्चमुखाम्बुजं त्रिनयनं वन्दे ललाटेक्षणं वन्दे व्योमगतं जटामुकुट चन्द्रार्धगङ्गाधरम् । (वन्दे व्योमकचं जटासुमकुटं वन्देऽजगङ्गाधरम् ।) वन्दे भस्मकृतत्रिपुण्डुजटिल वन्देष्टमूर्त्यात्मकं (वेन्दे व्योमकचञ्जटासुमकुर्ट) वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शङ्करम् ॥ ५॥
वन्दे कालहरं हरं विषधरं वन्दे मृडं धूर्जटिं वन्दे सर्वगतं यामृतनिधिं वन्दे नृसिंहापहम् । वन्दे विप्रसुराचिताङ्गिकमलं वन्दे भंगाक्षापहं वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शङ्करम् ॥ ६॥
वन्दे शङ्करमप्रमेयमतुलं वन्दे यमद्वेषिणम् । वन्दे कुण्डलिराजकुण्डलधरं वन्दे सहस्राननं वन्दे भक्तजनाश्रयं च "वरदं वन्दे शिवं शङ्करम् ॥ ७॥
वन्दे हंसमतीन्द्रियं स्मरहरं वन्दे विरूपेक्षणं वन्दे भूतगणेशमव्ययमहं वन्देऽर्थराज्यप्रदम् । वन्दे सुन्दरसौरभेयगमनं वन्दे त्रिशूलायुधं वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शङ्करम् ॥ ८॥
वन्दे सूक्ष्ममनन्तमाद्यमभयं वन्देऽन्धकारापहं (सूक्ष्ममनन्तमाद्यमनघं वन्दे फूलननन्दिभृङ्गिविनतं वन्दे सुपर्णावृतम् । (रावणवाणभृङ्गिविनुतं) वन्दे शैलसुतार्धभागवपुषं वन्देऽभयं त्र्यम्बकं वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवंशङ्करम् ॥ ९॥
वन्दे पावनमम्बरात्मविभवं वन्दे महेन्द्रेश्वरं (वन्दे पावनमम्बरात्मममलं वन्दे महादैवतं वन्दे भक्तजनाश्रयामरतरुं वन्दे नताभीष्टदम् । (भक्तवराश्रयामतरं) वन्दे जनुसुताम्बिकेशमनिशं वन्दे गणाधीश्वरं वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शङ्करम् ॥ १० ॥
॥ इति श्रीशिवस्तुतिः सम्पूर्णा ॥ ( शिव स्तुति श्री आनन्द त्रिपाठी द्वारा रचित )


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